पल्लीवाल जैन इतिहास | Paliwal Jain Iitihas

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अगरचन्द्र नाहटा - Agarchandra Nahta

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दौलतसिंह लोढ़ा 'अरविंद' - Daulat Singh Lodha 'Arvind'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पल्‍लीवास (ल) ब्राह्मणों ने प्लनपुर में महाराज जयसिंह को सूचित की थी । ऐसा उल्लेख-वि० सं० १३३४ के प्रभाचन्द्रसुरि के सं० प्रभावक चरित्र [वीरा चार्य चरित्र श्लो० १६--१६] में मिलता है। सिद्धराज और कुमारपाल के महामात्य प्राग्वाटवृंशीय आनन्द पुत्र पृथ्वीपाल ने वि० सं० १९०१ ज्येष्ठ वदी ६ रविवार को अपने श्रेय के लिए कराई श्री विमलनाथ और श्री श्रनन्तनाथ देव जिन युगल सूर्तियाँ वल्लिका (पाली) के महावीर चेत्य में अर्पण की थीं। उसका लेख श्री नाहर जेन लेख संग्रह (भा० १, ले° ८१४, ८१५) तथा श्री जिन विजयजी प्रा० जेन लेखसंग्रह भा०२ ले० ३८९ दर्शाया है । श्रीगुजरातनो प्राचीनमत वंश नामक मेरा लेख ओरियन्टल कॉन्‍्फरेन्स ७ वां भ्रधिवेशन निबन्ध संग्रह में सन्‌ १९३५ बड़ौदा से प्रकाशित हुआ, उसमें सूचित कियां हैं । जैसलमेर किले के ग्रन्थ भंडार में रही हुई पंचाशक वृत्ति के ताड पत्रीय पुस्तक के न्त मे सं° दो परयो मै उल्लेख ह कि विक्रम संवत १२०७ में पतली-भंग के समय उस च्‌.टित पुस्तक को ग्रहण किया था, पीछे श्री जिनदत्तसूरिजी के शिष्प्र स्थिर चन्द्र गणि ते अपने कर्म- क्षयार्थ अजय मेर दुर्गं मे उसके गतं भाग को लिखा था । सुप्रसिद्ध ्राचार्य श्री हेमचनद्रजी ने गुर्जरेश्वर महाराजा कुमार पाल की कीति प्ली-देश ( पाली प्रदेश ) मे भ्रमण करती सूचित की है। उनकी देशी नाम माला (वर्ग ६, गा० १३५ वृत्ति में इस भाव का ११८ वाँ দত ই “अग्नुरिश्र तेअ---म्ुुलासिय !, जयसिरि--वीवाह ! युक्कया तुज्क मरइ स्वं भमई किन्त, .मझुआइणी कि श परिलि হী তরি?) (६ )




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