शैली | Shaili
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about करुणापति त्रिपाठी - Karunapati Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ४ )
मुख्य साधन है । दूसरे शब्द् दम यह कहा जा सकता है कि मन ही
मनुष्य के अजित एवं सड्चित ज्ञान-कोषका अध्यक्ष हे। जितने
ज्ञान हम होते है यह मन उन सवका काल्पनिकं चित्र बनाता
ओर अपने कोषागारमे सञ्चित करता चलता हे ! अतएव हमारे
अनुभवों, तर्को, भावों, मनोविकारों एवं हमारी कल्पनाओं,
स्वृतियों, भावनाओं आदिके अनन्त मानस-चित्र हमारी उस,
निधिम सब्चित हांते रहते है ।
पस्तु, उपयुक्त वेचिच्य-नियमके अनुसार प्रत्येक मानवके
ग्रहण-उ्यापारकी पारस्परिक भिन्नतके कारण सभीके हदय-पटल
पर अङ्कित उक्त मानस-चिच्र भी परस्पर भिन्न होते 9५ फलतः
उन् मानस-चिघ्रोका जब सरस्वतीके माध्यमद्रारा प्रकाशत कियो
जाता है, अभिव्यब्जन किया जाता है. तब उन मानस-चित्रोंकी
भिन्नताके कारण एवं प्रकाशनकी क्रिया-भिन्नताके कारण अभि-
व्यक्तिके भावों एवं भाव-बोधक साधनों मे भा भेद पड़ जाता है ।
इस भाति दमारी च्भिग्यञ्जन-भणालियां भिन्न होती हं ओर
उनके साधनोंम भी भेद पड़ जाता है। अभिव्यक्ति-साधनोंम केसे
अन्तर पढ़ता हे इसका विचार करनेके पूर्वे अभिव्यक्तिके साधन---
बाणोके सम्बन्ध भी संक्षिप्त विचार कर लेना अनुचित न होगा
अनुकम्पाशील भगवानने मानव-जातिपर विशेष कृपा करके
उसे जिन अनेक शक्तियोंका वरदान दिया उनमें वाक्शक्ति सर्व-
प्रमुख है । यदि सानवकी अरन्य सभी शक्तियाँ जेस है वैसी ही
रहती किन्तु केवल वाक्-शक्तिका वरदान उसे प्राप्त न हुआ होता
तो अपने हृदयंगत अनन्त कल्पनाओं, भावनाओं, एवं अनु-
भूतियो के भारसे दबकर उस मूक-मानस-सष्टिकी न जाने क्या
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