शैली | Shaili

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Shaili by करुणपति त्रिपाठी - Karunapati Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) मुख्य साधन है । दूसरे शब्द्‌ दम यह कहा जा सकता है कि मन ही मनुष्य के अजित एवं सड्चित ज्ञान-कोषका अध्यक्ष हे। जितने ज्ञान हम होते है यह मन उन सवका काल्पनिकं चित्र बनाता ओर अपने कोषागारमे सञ्चित करता चलता हे ! अतएव हमारे अनुभवों, तर्को, भावों, मनोविकारों एवं हमारी कल्पनाओं, स्वृतियों, भावनाओं आदिके अनन्त मानस-चित्र हमारी उस, निधिम सब्चित हांते रहते है । पस्तु, उपयुक्त वेचिच्य-नियमके अनुसार प्रत्येक मानवके ग्रहण-उ्यापारकी पारस्परिक भिन्नतके कारण सभीके हदय-पटल पर अङ्कित उक्त मानस-चिच्र भी परस्पर भिन्न होते 9५ फलतः उन्‌ मानस-चिघ्रोका जब सरस्वतीके माध्यमद्रारा प्रकाशत कियो जाता है, अभिव्यब्जन किया जाता है. तब उन मानस-चित्रोंकी भिन्नताके कारण एवं प्रकाशनकी क्रिया-भिन्नताके कारण अभि- व्यक्तिके भावों एवं भाव-बोधक साधनों मे भा भेद पड़ जाता है । इस भाति दमारी च्भिग्यञ्जन-भणालियां भिन्न होती हं ओर उनके साधनोंम भी भेद पड़ जाता है। अभिव्यक्ति-साधनोंम केसे अन्तर पढ़ता हे इसका विचार करनेके पूर्वे अभिव्यक्तिके साधन--- बाणोके सम्बन्ध भी संक्षिप्त विचार कर लेना अनुचित न होगा अनुकम्पाशील भगवानने मानव-जातिपर विशेष कृपा करके उसे जिन अनेक शक्तियोंका वरदान दिया उनमें वाक्शक्ति सर्व- प्रमुख है । यदि सानवकी अरन्य सभी शक्तियाँ जेस है वैसी ही रहती किन्तु केवल वाक्‌-शक्तिका वरदान उसे प्राप्त न हुआ होता तो अपने हृदयंगत अनन्त कल्पनाओं, भावनाओं, एवं अनु- भूतियो के भारसे दबकर उस मूक-मानस-सष्टिकी न जाने क्या




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