भारत की अंतरात्मा | Bharat Ki Antaratma
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Dr. Sarvpalli Radhakrishnan,
विशम्भरनाथ त्रिपाठी - Vishambharnath Tripathi
विशम्भरनाथ त्रिपाठी - Vishambharnath Tripathi
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
183
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Dr. Sarvpalli Radhakrishnan
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विशम्भरनाथ त्रिपाठी - Vishambharnath Tripathi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ भारत की शअ्रन्तरात्मा
प्रकार का प्रतीत होता हँ।* एक प्राचीन धर्मवाक्य का कथन है कि
साधकों की सुविधा के लिए ही निराकार परमात्मा को साकार
कल्पिद कर लिया गया हूं।
दाशनिक मनोवृत्ति का जो सहज गुण उदार मति हैँ, उसी की
प्रेरणा से अश्रतुयायियों की सामान्य प्रवृत्ति के अनुसार हिन्दू लोग
सम्प्रदायों की श्रापेक्षिकता में विश्वास करते है। धर्म तो श्रव्यक्त-
सम्बन्धी कोई थिद्धान्तमात्र नहीं हैं जेसि जब चाहा भानने लगे और
जब इच्छा बदली तो दूर हटा दिया। वह तो जाति के आध्यात्मिक
ग्रनभवों का प्रकटरूप हैँ, उसके सामाजिक विकास का इतिहास हैं,
एक समाज विशेष का श्रविच्छेद्य घटकातब्रयव है। भिन्न-भिन्न लोग
भिन्न-भिन्न धर्मों के श्रनुयायी बनें, यह तो बिलकुल स्वाभाविक ही है ।
धर्म तो अपने स्वभाव एवं रुचि का प्रश्न हैँ--'रुचीनाम् वेचित्र्यात्
जब प्रायं लोग यहाँ के उन मल निवासियों से मिले जो भाँति-भाँति के
देवताग्रों की पूजा करते थे तो उन्होने एकाएक उनके मर्तो को दबा
देने की बात नहीं सोची। भ्राखिर सभौ लोग उसी एक परमात्मा
की तलाझ में हें। भगवदगीता का कथन हूँ कि यदि कोई उपासक
भगवान् के श्रेष्ठतम स्वरूप तक नहीं भी पहुँच सका है तो भी वे
उसकी प्रार्थना को अस्वीकार नहीं करते। एक मत को परित्याग
कर रौधघ्रतापूवेक दूसरे को अंगीकार करने की कोशिश में हम
प्रतीत से बहुत दूर जा पड़ते हैं, फलत: ग्रव्यवस्था एवं श्रनवस्था का
सामना करना पड़ता हूँ। संसार के महान् उपदेशक, जिन्हें इतिहास
का यथ्थष्ठ ज्ञान हूँ, अपने विचारों को उन लोगों पर ज़बरन लादकर,
* तुलना करो--बाइबिल-साम-१८४-२५, २६
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