अबला | Abalaa

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Abalaa by श्री दुलारेलाल भार्गव - Shree Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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050] गाहस्थ्य जीवन लाला दीनदयाल इसलामाबाद म नौकर ये। उरनं नोकरी करते-करते बीस वर्ष हो चुके थे | उनका स्वभाव और रहने-सहने का ढग साद।/ था | कचहरी का काम निबटाकर, शाम को रोज़ाना घर थ्रा, कपड़े बदलकर, कुछ नाश्ता कर टहलने जाते ओर रात के भोजन के पश्चात्‌ आय-समाज चले जाते थे। उनके बिचार कट्टर आय-समाजियों के-ते थे | देब-गति से उनकी धर्मपत्नी कड्डर सनातनघर्मिणी थीं। बिवाह छोटी उम्र में होने के कारण उनकी री का प्रभाव उन पर ज़रूरत से ज्यादा था | वह जो चाहती थीं, करती थीं, और जो मन में आता था, उसे, चाहे इधर को दुनिया उधर हो जाय, बरोर किए नहीं मानती थीं । दीनदयालजी की दो पुत्री शीला और कला थीं। शीला की शिक्षा का प्रबंध अच्छा कर दिया था | किंतु जब उसकी उम्र सोलह साल की हो गई, तो उन्हें मजबूरन्‌ पाठशाला से उठाना पढ़ा। रोज़ाना की चें-में उन्हें बुरी लगती थी | जब तक शीला पाठशाल्षा में पढ़ती रही, उनकी स्त्री नाराज़ होने के सिवा और कुछ नहीं जानती थीं। कुछ तो लालाजी की इठ श्रोर कुछ शीला की योग्यता, दोनो के सहारे शीला पढ़ती रही । उसने अ्रपनी इस छोटी-सी उम्र में हिंदी ओर उदू का ज्ञानकाफ्री कर लिया था । रामायण, महाभारत झोर अमेक पुस्तकें पढ़ ही नहीं लेती थी, बल्कि उनका श्रर्थ भी कर लेती थी | पाठशाला में सब लड़कियों से तेज्ञ, होशियार झोर सु दर थी | विद्या के प्रभाव से उसका रूप दूना मालूम होता




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