हिंदी - साहित्य : एक ऐतिहासिक अध्ययन | Hindi Sahitya Ek Eitihasik Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १ ्रादिकालं आदिकाल का आरंभ हम ईसा की दसवीं शताब्दी के उत्तरार्धं से मानकर चलते है श्रौर इसका श्रंत चौदहवों शताब्दी के प्रथम चरण में स्वीकार करते हैं। अतः यहाँ दसवीं से चौदहवीं शतान्दी तक की अवस्थाग्रों को श्रध्ययत्त का विषय बनाया जाएगा । हमे ज्ञात है कि इस यूग के प्रारंभिक दिलों में भारत पर तुर्की ग्राक्रमण होते हैं, जिनसे यहाँ विदेशी तुर्कों का राज्य स्थापित होता है श्रौर तब हिंदी के श्रदिकाल के श्रंतिम युगो में दास तथा किलजी वंशो के शासन का युग चलता है । प्राशय यह्‌ कि तुर्कों के श्राक्रमण से लेकर खिलजी वंश के अंत तक के युग की परिस्थितियों का सामान्य परिचय प्राप्त करता ही यहाँ हमारा लक्ष्य है। भ्रत: ऐतिहासिक दृष्टि से इस प्रध्ययत को दो विभागों में विभक्त करना प्रावश्यक ह-- (१) मुसलमानों के भारतीय श्राक्रमण के युग का भारत ( पूर्वार्ध ) (२) दास एवं खिलजी वंश के शासनाधीन भारत ( उत्तरार्ध ) पूर्वाध (दसवीं से तेरहवीं शताब्दी का प्रथम चरण) सांस्कृतिक पर्यावरण हमारा यह भ्रध्ययन निम्नलिखित शीषकों के अंतर्गत व्यवस्थित है,-- (१) राजनीतिक श्रवस्था, (२) ग्राथिक अवस्था, (३) सामाजिक अवस्था तथा (४) धार्मिक अवस्था । राजनीतिक श्रवस्था--विचाराधीन युग मे संपृणं देश विभिन्न राजनीतिक इकाइयों में बँठ चुका था । मध्यदेश, जिसका सीधा संबंध हिंदी-साहित्य से था, विभिन्‍न राजपत राज्यों में बँटा हुआ था, जिनमें कन्नौज के गहड़वाल, मालवा के परमार, गुज- रात के सोलंकी, श्रजमेर के चौहान, उज्जैन के गुजर-प्रतिहार महोबा के चन्देले झ्रादि विशेष उल्लेखनीय थे। उधर उत्तर में हिमालय प्रदेश के राज्य--अ्रफगाल़िस्तान, काश्मीर पैपाल तथा आसाम आझ्ादि भी अपनी स्वतंत्र सत्ता बनाए हुए थे। पूर्व में बंगाल के पाल तथा सेन वंश का क्रमशः शासन स्थापित रहा ।“द्षिय भारत में राजपूत राज्य चालुक्य, राष्ट्रकूट, कल्याणी के परवर्ती चालुक्य देवगिरि के यादव, वारंगल के काक- तीय, द्वारसमद्र के होयसल, पललव, चोल, .पांड्य तथा चेरि आदि श्रनेक राज्यों में




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