त्रिलोचन कविराज | Trilochan Kaviraaj

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डॉ० ब्रज मोहन - Dr. Brajmohan

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रवीन्द्रनाथ मैत्र - Raveendranath Maitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सर्गीय रवीन्द्रनाथ मैच १३ उन्होंने अपने या अपने परिवारके लिए कभी कोई आशिक प्रयत्न नहीं किया । लेखों, पुस्तकों या अन्य छोटे-मोटे कामोंसे जो-कुछ मिल जाता था, उसीसे शुज्षर करके अपना सारा समय सार्वजनिक कार्योंमें लगाते थे । मुझे रबीन्द्र भेत्रको देखनेका कई वार अवसर मिल था। राक्र देखकर जल्दी कोई यह विश्वास ने करता कि यह शख्स पढ़ा-लिखा, उच्चकोटिका विद्वान है। एक अजीब व्यक्तिव था। रूखे बिखरे हुए बाल, खहरका कुर्ता-- जिसमें कभी बटन हैं, कभी नदारद--खदरकी घोती और परोंमें चह्टी। डाक्टर सुनीतिकुमार चउ्जीके शब्दोंमें 'फशनेबिल शिक्षित समाजमें बैठे हुए खीख मैत्र विद्रोही साक्षात मूर्ति-ससे दीख पढ़ते थे।! इस अस्त-व्यस्त व्यक्तिलभें आकपेणका एक षदा के था, वह धा सवीखनाथकी दोनों आँखें। मेंने एसी आकर्षक आँखें नहीं देखीं । बढ़ी-बड़ी छाल आँखोंमें अत्यन्त पेनी दृष्टिके साथ-साथ बालकों-जैसे भोलेपनका एक विचित्र मिश्रण था। उन आँखोंकों देखकर ही जान पढ़ता था कि यह रुखा-सूखा उखड़ा हुआ-सा व्यक्ति कोई साधारण व्यक्ति मही है । उनके-जेसा उन्मुक्त और অহ हास्य भी कम ऐेखनेकों मिझेगा। मेक्ितिम गौरकीके व्यक्तिवकी विशेषता यह बताई जाती है कि उनमें अपने-आपके प्रति सपाद रदनेका विचित्र याव था! गोकों कहता भी था, नवीन युगका मेता वह समाज होगा, जिसे हम आज अपने-आपके प्रतिं लापरवाह-सा देखते हैं ।' रवीखनाथ मेत्र इस तरहकी आकर्षक लापरबाहीकी चलती-फिरती भूति थे। उनकी बात-चीतसे ही उनमें शक्ति और स्फूर्ति छलकती जान पड़ती थी। , छात्र-जीवनमें कलकते आनेके बाद द्री उनका परिचय बँगलाके सुप्रसिद्ध




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