मानस प्रबोध | Manas Prabodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
80 MB
कुल पष्ठ :
305
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न গন প€ শসা
२ মি मानस-प्रबाध ।
अलग ही शास्त्र निर्माण किया गया है। हम मानसप्रबोध में उन
बातों को बताना नहीं चाहते | हम इसमें विद्याथियां को
केवल वे बाते बताना चाहते हैं जा, अथ में ते नहीं, पर रूप
में लोकभाषा से भेद रखती हैं | ऐसे भेद का कारण कभी ते कवि
की खतन्त्रता होती है और कभी मात्रा वा वर्णो' की संख्या को
पूर्ति | कहने का तात्पर्य यह है कि पद्म रूप भाषा यद्यपि अधिकांश
में गद्य रूप भाषा से मिलती जुलती रहती है ता भौ उसमे कुछ .
न कुछ भेद भी रहता है । द
यह भेद केवल हिन्दी भाषा में ही नहीं होता बरन उसको
जननी संस्कृत में भी पाया जाता है । उदाहरण के लिए कुछ प्रयोग
हम दिखलाते हैं | वेद में एक ठौर लिखा है कि--
“ स दाधार प्रथ्वीं थ्रासुतेमां कस्मे देवाय हविषा विधेम ”
इस ऋचा में दाधार! पद को देखिए । यह साधारण लोकभाषा के
. समान नहीं है। साधारण लेकभाषा में 'दधार” ऐसा प्रयोग होता था,
परन्तु वही छन्द में 'दाधार” पढ़ा गया है। फिर और भी देखिये--
“अद्र॑ कर्णेमि: झणुयास देवा: श
इसमे 'कर्णंमिः पर हमारा लक्ष्य है । साधारण ल्ोकभाषा
में करों: ऐसा व्यवहार दोता था। वही छल्द में क्ेमि:”
कहा गया है। इस प्रकार के प्रयोगों से वेद भरे पड़े हैं। इसी हेतु
संस्कृत व्याकरण के रचयिता भगवान् पाणिनिजी ने अपने व्याकरण
अष्टाध्यायी से एक सूत्र दी रच दिया । वह सूत हे “बहलं ढन्दसिः' 1 `
` यह सूत्र अध्याय सात, पाद एकं और संख्या दस का है । इसका `
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