शिक्षाप्रद पत्र | Shikshaprad Patra
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जयदयाल गोयन्दका - Jaydayal Goyandka
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२९ शिक्षाप्रद् पत्र
आवश्यकता ही नहीं है | भगवानको श्रद्धा-भक्तिपूवकत अनन्यभावसे
जेत्य-निस्तर याद रखना चाहिये । गीता अध्याय ८ छोक ও
रीर १४ की तखवरिवेचनी टीका देखनी चाहिये। उसमें अनन्यभावसे
वजन करनेका महत्त्व बताया गया है।
आपने लिखा कि गीता अध्याय ५ छोक २७ के अनुसार
तब काम श्रीमगवानके अर्पंण करनेकी चेश करनेपर ` भी बहत
कामना हो जाती है, सो मादरम किया-। जबतक कामनाएँ रहती
हैं, तबतक शरण होनेमें ही कमी है | आपके - कामनाएँ होती हैं
तो आप अभी वाणीसे ही मगवानके शरण हुए हैं, मनसे नहीं |
मनसे सब कुछ भगवानके अर्पण करके उनके शरण होनेपर फिर
कामनाएँ नदीं हो सकतीं । यह सिद्धान्तकी बात है ।
२८ >८ ><
साधनकी वात लिखनेके लिये लिखा, सो ठीक है । भगवान्
के नामक। जप और खरूपका ध्यान निरन्तर निष्कामभावसे
विश्वास और प्रेमपरचंकत करनेकी तलरतासे चेष्ठा करनी चाहिये |
यह जो मतुप्य-शारीर मिला है, यह भगवानकी बड़ी भारी दयासे
ही मिला है। इसके रहस्यको समझकर भगवानके आदेशानुसार
इसे अच्छे-से-अच्छे काममें ही लगाकर जीवनकों सफल बनाना
चाहिये । भगत्रानके गुण, प्रभाव, লং रहस्यक्तो _स्वसशत्प>
भगवानमें श्रद्धा-प्रेम बढ़ाने चाहिये ।
सबसे ययायोग्य !
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