शिक्षाप्रद पत्र | Shikshaprad Patra

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Shikshaprad Patra by जयदयाल गोयन्दका - Jaydayal Goyandka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२९ शिक्षाप्रद्‌ पत्र आवश्यकता ही नहीं है | भगवानको श्रद्धा-भक्तिपूवकत अनन्यभावसे जेत्य-निस्तर याद रखना चाहिये । गीता अध्याय ८ छोक ও रीर १४ की तखवरिवेचनी टीका देखनी चाहिये। उसमें अनन्यभावसे वजन करनेका महत्त्व बताया गया है। आपने लिखा कि गीता अध्याय ५ छोक २७ के अनुसार तब काम श्रीमगवानके अर्पंण करनेकी चेश करनेपर ` भी बहत कामना हो जाती है, सो मादरम किया-। जबतक कामनाएँ रहती हैं, तबतक शरण होनेमें ही कमी है | आपके - कामनाएँ होती हैं तो आप अभी वाणीसे ही मगवानके शरण हुए हैं, मनसे नहीं | मनसे सब कुछ भगवानके अर्पण करके उनके शरण होनेपर फिर कामनाएँ नदीं हो सकतीं । यह सिद्धान्तकी बात है । २८ >८ >< साधनकी वात लिखनेके लिये लिखा, सो ठीक है । भगवान्‌ के नामक। जप और खरूपका ध्यान निरन्तर निष्कामभावसे विश्वास और प्रेमपरचंकत करनेकी तलरतासे चेष्ठा करनी चाहिये | यह जो मतुप्य-शारीर मिला है, यह भगवानकी बड़ी भारी दयासे ही मिला है। इसके रहस्यको समझकर भगवानके आदेशानुसार इसे अच्छे-से-अच्छे काममें ही लगाकर जीवनकों सफल बनाना चाहिये । भगत्रानके गुण, प्रभाव, লং रहस्यक्तो _स्वसशत्प> भगवानमें श्रद्धा-प्रेम बढ़ाने चाहिये । सबसे ययायोग्य !




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