शरत् - साहित्य | Sharat Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वामी श्ट् दिनोंतक तू सिर्फ मेरा ही सिर खानेके लिए अंखिं बन्द किये सोई हुई थी १ माके कई बार बुलानेपर मैं घोती बदलकर आई । ब्राह्मणीने मुझे बारीकीसे देखकर कहा लड़की पसन्द है। अब दिन निदिचत करना भर बाकी रहा । मेरी माकी अँखोंमें आँसू भर आये । कहा तुम्हारे मुँहमें घी-शुक्कर पड़े बहन और मैं क्या कहूँ कि मामाने सुनकर कहा सिफृं एण्टेन्स पास है तो कहा मेजो कि जरा जाकर दो बरस हमारी सोदामिनीसे अँगरेजी पढ़ जाय तब ब्यादकी बात- चीत की जायगी माने कहा मइया मैं तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ । यह सम्बन्ध मत फेरो। ऐसा अच्छा सुयोग फिर नहीं मिछेगा । कुछ देना-ठेना नहीं पढ़ेगा-- मामाने कहा तब फिर तो हाथ-पैर बाँधकर गंगामें डुबा आओ । गंगा मी एक पैसा नहीं सँगिंगी । माने कद्दा पर लड़कीने पन्द्रदवें बरसमें पैर दिया है जो -- मामाने कहा हाँ तो तो देगी ही क्योंकि प्द्रद्द बरस तक बची रही है जो मारे क्रोध और दुमखके माका गला भर आया | वे बोलीं तो फिर क्यों मइया क्या तुम इसका ब्याह नहीं करोगे १ इसके बाद अब फिर कोई पात्र नहीं मिलनेका 1 मामाने कहा लेकिन इस डरसे उसे पहलेसे ही तो पानीमें फेंक नहीं दिया जा सकता | माने कहा भइया छुम आप ही एक बार जाकर अपनी अँखोंसे छड़- केको देख न आओ । अगर पसन्द न हो तो न करना सम्बन्ध । मामाने कहा . यह ठीक है । मैं चिट्ठी लिखे देता हूँ कि रविवारकों आऊँगा | कोई भौंजी न मार दे इस भयसें माने बात छिपा रखी और मामाकों भी सावधान कर दिया । पर वे नददीं जानती थीं कि ऐसी आँखें और काम भी हैं जिर्हें कोई सी सतकंता घोखा नहीं दे सकती. अपने बागके जमीनके एक टुकड़ेमें मैंने साग-भाजी बो रखी थी । दो दिन बाद दोपदरके समय में एक टूटी हुईं खुरपी लिये उसमेंकी घास साफ कर रही थी । पेरॉकी आइटसे मुँह फेरकर देखा तो नरेन्द्र खड़ा है उसकी उस तरदइकी मुखाकृति मैंने बहुत दिन पहले एक बार अवश्य देखी थी पर उसके




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