भारतीय साहित्यों की कहानी | Bhartiya Sahityon Ki Kahani

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Bhartiya Sahityon Ki Kahani by भगवतशरण उपाध्याय - Bhagwatsharan Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बंगला १५ दीन चण्डोदास भो उसो परम्परा का कवि है श्रौर उसका 'कृष्ण-कौर्तेन' मध्य कालीन बंगला का प्रसिद्ध काव्य है । चोदह॒वीं सदी के शुरू में होने वाले कृत्तिबास ओभा ने रामायण की कथा लेकर काव्य लिखा, जिससे उसने काफी ख्याति पाई । पन्द्रहुवों सदी के चौथे चरण मे माला- धर वसु ने शुरणराज खां के नाम से कष्ण को कथाएं काव्य- बद्ध कीं जो बड़ी लोकप्रिय हुईं। उन्हीं दिनों विजययुप्त और विप्रदास ने बिहुला और लखिन्दर की प्रसिद्ध कविताएँ लिखों । पन्द्रहवीं सदी बंगला साहित्य में विशेष स्थान रखतो है। उसी सदी मे चेतन्य ने श्रषना भक्ति-रस बहाया श्रौर बंगाल के मुसलमान सुल्तान बगला के प्रति श्राकृष्ट हुए । रामायर-महाभारत श्रोर पुरारणो को श्रनेकं कथाएं तब से उक्नीसवीं सदी तक लगातार कान्यबद्ध होती गई । पन्द्रहवीं सदी मे ही विद्यापति के मधुर पद बंगाल के नये कवियों के गायन मे बसे श्रौर बंगला मे इस प्रकार एक नई गोति काव्य को धारा बही । ब्रजभाषा भी कुछ श्रशों मे ब्रज-बुलो के नाम से तभी बंगाल में प्रचलित हुई और उसने बंगला के कवियों पर श्रपना प्रभाव डाला । सोलहवीं सदी मं जीवन-चरितों की जेसे बाट्‌ श्रा गई श्रौर चेतन्य-भागवत, चतन्य-मंगल, चेतन्य-चरणाम्रत श्रादि




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