प्रमाण - नये - निक्षेप - प्रकाश | Praman Nay Nichhep Prakash

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Praman Nay Nichhep Prakash  by पं. कैलाशचंद्र शास्त्री - Pt. Kailashchandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ह : प्रमाण-मय-निक्षेप-प्रकाश समाधान--केवलज्ञानावरणकर्म सर्वधाती ही है, क्योंकि वह केवल- ज्ञानको पूरा ढाकता है। फिर भी जीवका अमाव नहीं होता, क्योंकि केवलज्ञानके आवृत होनेपर भी चार ज्ञानोंका अस्तित्व पाया जाता है । शंका--जीवमें एक केवलज्ञान है उसे जब पूरा आवृत कहते हो तो फिर चार ज्ञानोंका सद्भाव कैसे हो सकता है ? समाघान-जैसे राखसे ढकी हुई आगसे वाष्पकी उत्पत्ति होती है वैसे ही सर्वघाती आवरणके द्वारा केवलज्ञानके आवृत होनेपर भी उससे चार ज्ञानोंकी उत्पत्ति होनेमें कोई विरोध नहीं आता । शंक्रा-वे चारों ज्ञान केवलज्ञानकरे अवयव नहीं हो सकते, क्योकि थे विकल हैं, परोक्ष हैं, क्षयसहित हैं और घटते-बढ़ते हैं । इसलिये उन्हें सकलप्रत्यक्ष तथा क्षय गौर हानि-वृद्धिसे रदित केवलज्ञानके अवयव माननेमे विरोध आता है ? समाधान --ज्ञानसामान्यको देखते हुए चारों ज्ञानोंको केवलशान- का अवयव माननेमे कोई विरोध नहीं आता । इस प्रकार प्रमाणकं पाँच मेदोका स्वरूप बतलाकर आगे उनके मेद- अ्रभेदोंका कथन करते हैं । मतिज्ञानके भेद मतिज्ञानक चार भेद हैं--अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा | विषय और विषयीका सम्पात होनेक अनन्तर जो प्रथम ग्रहण होता है वह अवग्रह है-- स्पर्श, रस आदि अर्थ विषय हैं । छहों इन्द्रियाँ विषयी है । ज्ञान उत्पन्न होनेकी पूर्वावस्था विषय और विषयीका सम्पात है। उसे ही दर्शन कहते हैं। उसके बाद जो वस्तुका प्रथम ग्रहण होता है वह अवग्रह है। जैसे चक्षुके द्वारा यह घट है! ऐसा ज्ञान होना अवग्रह हें। जहां घटादिकं बिना, रूप दिशा आकार आदिसे विशिष्ट वस्तु मात्र अनध्यवसायरूपसे जानी जाती हैं वहाँ भो वह ज्ञान अवग्रह ही है क्योंकि अवग्रहके विना ईहादि ज्ञानकी उत्पत्ति नहीं हो सकती।




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