प्रेम - पंचमी | Prem-panchmi

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Prem-panchmi by दुलारेलाल भार्गव - Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मृत्यु के पोछे ५ भिविल सर्विस । लेकिन आज तक न सुना कि को$ एडीटरी का काम सीखने गया हो । क्‍यों सीखे ? किसी को क्या पड़ी है कि जीवन की महत्त्वाकां्ाओं को खाक में मिलाकर त्याग ओर विराग में उम्र कांटे । हाँ, जिनको सनक सबार हो गई डो, उनकी बात ही निराली है । इश्वरचंद्र--जीवन का उदेश्य केवल धन-संचय करना ही नहीं है । सातकी--अभी तुमने वकीलों को निंदा करते हुए कहा, ये लोग दू सरों की कमाई खाकर मोटे होते हैं। पत्र चलाने- আবী भी तो दूसरों की ही कमाई खाते हैं । देश्वरचंद्र ने बग़लें काँकते हुए कहा--“हम लोग दूसरों की कमाई खाते हैं, तो दूसरों पर जान भी देते हैं। वकीलों की भाँति किसी को लूटते नहीं ।” मानको--यह तुम्हारो हटधर्मी है । वकील भी तो अपने सुवक्छिलों के लिये जान लड़ देते है । उनकी कमाई भो उतनी ही हलाल हैः जितनी पत्रवालों की । अंतर केवल इतना है कि एक की कमाई पहाड़ी सोता है; दूसरे की बरसाती नाला | एक म निस्य जलप्रवाह होता है, दुसरे में निस्य धूल उड़ा करती है। बहुत हुआ; तो बरसात में घड़ी-दो घड़ी के लिये पानी आ गया । ईैश्वर०- पहले तो में यही नहीं मानता कि वकीलों की कमाई हलाल है, और मान भी लू, तो किसी तरद यह नहीं




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