श्री वल्ल्भपुष्टिप्रकाश | Shree Vallbhapushtiprakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
122 MB
कुल पष्ठ :
398
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास - Gangavishnu Shreekrishndas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम माम)
> ०२
॥ श्रीकृष्णाय नमः ॥ श्रीगोषीजंनवद्धमाय नमः ॥
॥ अय त्रासिता परकी सेवा प्रकाशमें सेवाकी रीतिसों श्रीपु*
|| मागमे आडङुरनीका सेवाविषे केवर सेह बत्सल्य मुख्य
॥ है, जेसे माता अपने बालककी वत्तठता विचारत रहे । ओर
॥ पतित्रता श्री अपने पतिका पत्तन्नता चाईवोी करे । ओर (यथा |
॥ देड्ढे तया देवे ) इत्यादि शास्त्रीय विधि पूर्वक जैसे उष्णकाहमें
॥ अपनेको गरमी ठगेंहे ओर शीतकाछमें अपनेको सरदी छगेहे
| और समयपर भूख प्यास ठगेहे । तामें जेसे आपन सर्व प्रका- |
|| रसां रक्षा करें हैं। तेसे समयानुसार भगवत् स्वरूपमेंह विचा- |
|| रत रहे सो ही सेवाहे । ओर केवछ जहा माहात्म्यहे सो पूजा |
कृ दी नाये । हीयां माहात्म्यकी विशेषता नहीं हे! दीया तो |
| के वड प्रीतकी पहँचान हे । जेसे गोविन्द्स्वामीने गायो है कि, ||
| शीतम प्रीत इते पेये” जाप्रकार आरीव्जभक्तननें श्रीठाकुर- |
|| जक प्रम विचारके सेवा करी है ताही प्रकार ओऔजजभक्त- |
| नकी यापु यह सेवा है। नैसे या पदमें गायो हे के सेवारीत ॥
ग्रीत त्रजजनकाी जनहित जग प्रगठाई । दास शरण हारवाग- ॥
धीशकी चरणरेणु निधि पाई” ॥ और सूरदासजीने गायो हे । |
|| “भन साति भाव भाषिक देव । कोटिसाघन करो कोड तो |
|| न माने सेव ॥ १॥ धूम्र कैतु कमार मग्यो कोन मारग नात । ||
| पुरुषते धिय भाव उपन्यो অন उख्टी रीत ॥ २॥ वक्षन भूषन् |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...