मंगल-ज्योति | Mangal Jyoti

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Mangal Jyoti by हिमांशु श्रीवास्तव - Himanshu Srivastav

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जन्म- ११ मार्च १९३४ को बिहार में सारण जिले के अंतर्गत दिधवारा अंचल का एक गाँव- हराजी।

शिक्षा- मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि।

कार्यक्षेत्र- पहली कहानी कल्पना में छपी। पाँचवें दशक के प्रारंभ से उपन्यासों का प्रकाशनारंभ। सन 1949 में प्रसिद्ध रेडियो नाटक उमर खैयाम का आकाशवाणी द्वारा राष्ट्रीय प्रसारण।

प्रकाशित कृतियाँ-
उपन्यास- लोहे के पंख, नदी फिर बह चली, भित्तिचित्र की मयूरी, मन के वन में, दो आँखों की झील, कुहासे में जलती धूपबत्ती, रिहर्सल, परागतृष्णा, शोकसभा, प्रियाद्रोही, पुरुष और महापुरुष, पूरा अधूरा पुरुष, पैदल और कुहासा, नई सुबह की धूप, इशारा, न खुदा न सनम आदि ३६ उपन्यास।
कहानी संग्रह- ज

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হা म॑गल-ग्योति क्रेचल मौखिक जय ही सुनायी पड़ेगी,, वास्तविक जय आपष नहीं देखेंगे । किसी ने सच ही तो कहा है--- हरचंद यह बात तुमसे कहने की नहीं । कहता हूँ कि मुह पर आई रहने की नहीं ।। ज़ाहिर में सफाई और दिल में कीना- उलटी गंगा बहाग्रो, बहने की नहीं ॥ यहाँ एक बड़ा ही श्रच्छा प्रसंग स्मरण आ रहा है। एक प्रसिद्ध उपन्यासकार ने किसी विश्वविद्यालय की गोष्ठी में भाषण किया । वहाँ बहुत-से नवयुवक उपस्थित थे। गोष्ठी में उपन्यास- कार ने एकाएक नवयुवकों से प्रश्न किया, “बताइए, आप में से कोन लेखक बनना चाहते हैं १” उत्तर में सभी उपस्थित युवकों ने हाथ उठा लिये । उपन्यासकार ने उन्हें एक बार गोर से देखा ओर कहा, “बहुत खूब ! किंतु, आप यहाँ खड़े क्यों समय नष्ट कर रहे हें, जाइए ओर लिखिए ।” बस, यहीं से हम सबकी कहानी शुरू होती है। हम सभी अपने राष्ट को गोरवमय देखना चाहते हैं, किंतु हममें से कितने है, जो वस्तुतः भारत को गौरवमय बनाये रखने के लिए प्रयत्न- शील रहते है १ इस पर तुर यह कि हम सभी मादृभूमि की जयं मनाते है । मगर, मातृभूमि की जय मनाने कृ यह मौखिक तरीका ठीक नहीं है। जय त्याग ओर बलिदान के मार्ग से आती है, আম হাহ से वह घबड़ा जाती है ।




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