विज्ञान | Vigyan

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Vigyan  by गोरख प्रसाद - Gorakh Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ विज्ञान, अक्टूबर, १९४२ [ भाग ४६ ता জব উর এ রর ও ক পচ ও ও লগ নি পা के ० भा कर का ७ ७० 4७ के আক জজ আজও জা ৯৬৯ কজ জজ অজ জল পক জপ পাল্লা শি ঞ এ এ উর এ ৯ বাজি জকি পতি আস এজ কক আজ জবার হও পর का का कक का कक के 20 +क के के के आन कक सा कफ व ने जे के का कक ७० ७ के का काका 3 ७३०१३ कक कक कक काका का তপন ক ০ চিজ नानक कक कक या'क काना कक क जन के সশসিসশনত সহ ৯৯৯০ জককাকজজলল৯সপীজ जन পদিজতজশিশ তপন অঙ্জজতি শত শি লাজ জি ক ध ০৬ ক | এন न किया जा सके | निस्सन्देह फलके कार्यात्रयोंमें जो संतरे, नींबू आदिके छिलके निकलते हैं उसंसे अगर पेक्टिन का व्यापार नहीं तो कमसे कम अपनी'खपतके लिये कार्यालयों में स्वयं यथेप्ट पेक्टिन निकाली जा सकती है। अतः भारत में व्यापारिक दष्टिसे पेक्टिनका निर्माण केथे द्वारा हीं किया जा सकता है। उपरोक्त विधियोंके आधार पर लेखकने निम्न रूपसे के हारा पेक्टिन निकाला है 1 (१) पेक्टिनका निकालना :--- केथेके तोड़ कर उसके गूदेको छोटे छोटे टुकड़ोंमें काट दिया जाता है अथवा सशीन द्वारा गूदा महीन टुकड़ोंमें विभाजित किया जा सकता है। केथ्रेके कठिन छिल्कोंका भीतर। सफेद भाग भी खुरच लिया जाकर হুইল লিলা दिया जाता है। आवश्यकतानुसार इसकों पीसा भी जा सकता है | क्रारण यह है' कि जितना ही विभाजित अवस्था- में गूदा रहता है उतनी ही अधिक मात्रामें पेक्टिन निकलती है । इस गूदेकों पर्याप्त जलमें ६०-६२० (श) तापक्रम पर प्रायः डेढ़ घण्टे तक गरम किया जाता है। इस तापक्रम पर पेक्टिनका परिवर्तेन पेक्टिक एसिड्सें नहीं हो पाता । अधिक तापक्रम ओर ज़्यादा देर तक पकानेसे पेक्टिनका कुछ भाग पेक्टिक एसिडमें बदल जाता है जो कि व्यापारिक दष्टिसे एक अनुपयोगी पदाथः है और जैसा कि कहा जा चुका हे पेविटक एसिडमें जेली वनानेकी शक्ति नहीं होती । ग्रतः पेक्टिन निकालते समय यह बात ध्यानमें रखना अत्यन्त आवश्यक है कि ऊँचे तापक्रम पर और अधिक काल तक फलके गूदेकी न पकाया जावे। निस्सन्देह उपरोक्त क्रियामें जलीयकरण द्वारा कुछ पेक्टिनका पेक्टिक एसिडमे परिवर्तन हो ही जाता है, किन्तु पेक्टिनकों कोई विशेष मात्रा नहीं नष्ट हो पाता) गरम करते समय यद्यपि केथेकी. खटाई पेक्टोखको पेक्टिनमे परिशित कर देनेके लिये यथेष्ट हे किन्तु फिर भी यदि उससें ०*५ प्रतिशत खटाई डाल दी जावे ( नीबूका सत आदि ) तो उक्त क्रिया सम्पूर्ण रूपसे शीघ्रतापूर्वकक हो जाती है। पेक्टिनके घोलको कपड़ेसे छान लिया जाता है। ओर गूदेको धुनः जलके साथ दूसरी बार उसी प्रकार उवाला जाता हे । छाननेके बाद फिर तीसरी बार उसमेंसे श ৬ पेक्टिन निकाल ली जाती हैं | पिछले दो बार केवल एक एक घंटे ही पकाना आवश्यक है। -इस क्रियासे गूदेकी अधिकांश पेक्टिन घोलमें आः जाती है। तीनों निचोड़को अलग अलग गाढ़ा किया जाकर एकमें मिला दिया जाता है ओर फिर एक बार कपड़ेसे गाढ़े रसको छान लिया जाता (२) पेक्टिनकों एकपिंड करना :--- फलके रसको नापकर, उसकी दूनी मात्रामें व्यापारिक अलकोहलमें थोड़ी मात्रामें (६५ श्रतिशत) नमकका तेज़ाब डाल कर रसको एक बड़े बत्तनमें भली भांति हिलाया जाता हे । फिर प्रायः दो घंटे तक उसको शान्ति रूपसे रखा रहने देना चाहिये । इस समयमे पेकटिनका एक विशाल पिंड भूरे रंगकी लेई जैसा बन जाता है। तेज़ाब डाल देने से यह क्रिया शीघ्र होती है अन्यथा इसमें ओर अधिक समय लगता हे । (३) पेक्टिनको कानना - पेक्टिनका थक्का एक बड़े फ्लिटर पेपर द्वारा छान कर अलग कर लिया जाता है ओर अधिक अलकोहलसे धो दिया जाता है जिससे अनेक अशुद्धियाँ छुन कर निकल जाती हैं एवं स्वच्छु पेक्टिन थक्केके रूपमें रह জানা ই। (४) पेक्टनकों पुनः एकपिंड बनाना :--- अधिक शुद्ध करनेके लिये लेई जैसे पेंक्टिनके थक्‍्केको फिरसे गरम जलमे घोल करके उपरोक्त विधिसे पुनः अल- कोहलके प्रयोगसे पेक्टिनको थक्‍्केके रूपसें परिणित किया जाता हे । इस क्रियासे पेक्टिनका भूरा रंग बहुत कम हो कर अधिक शुद्ध एवं स्वच्छु हो जाता है। (७५) तरल अथवा चूणे पेक्टिनका निर्माण :--- उक्त पेक्टिनके थक्‍्केको छान कर भली भांति अलकोहल से धोया जाता है। इस विशुद्ध पेक्टिनको वायुके कम दबाव पर ६० (श) तापक्रममें सुखाया जा सकता है द्रथवा गमं वायुम साधारण दबाव पर ६८० ७०० (श) पर शीघ्रतापूर्घक सुखा लिया जा सकता है । सूखने पर हल्के मटमेले रंगकी चूर्ण पेक्टिन तैयार हो जाती है । और यदि तरल पेक्टिनका निर्माण करना हो तो विश्युद्ध पेकिटिनके थक्केको गरम जलमें घोलकर गदे पेक्टिनका घोल तैयार कर लिया जाता हे । दोनों प्रकारकी पेक्टिन कृमि रहित बोतलोंमें भर कर बेची जा सकती है । द




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