प्रेमचन्द : एक विवेचना | Prem Chand Ek Vivechna

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Prem Chand Ek Vivechna by डॉ. इन्द्रनाथ मदान - Dr. Indranath Madan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूर्व पीठिका १३ लगान को चुकाने सें असमर्थ होने पर वह वेदखल कर दिया जाता था और उसे अपने सर्वस्व से हाथ धोने पड़ते थे।” धोदान' का होरी ऐसे किसान का जीता-जागता चित्र ই, जो भूख, बीमारी, उपेक्षा, पीड़ा और झत्यु के साथ संबर्ष करता है। 'यह पुराना रिव्राज़ था और बहुत समय से कृपकबगे की दरिद्रता बढ़ती चली आ रही थी। आर्थिक स्थिति ने एक मस्तिष्क को चेतना दी और देहात में जागरण का शंखनाद हुआ ।! १६००-२२ का किसान-विद्रोह युक्तप्रांत के कुछ ही जिलों तक सीमित था। लेखक का मत हे कि किसान-आन्दोलन के लिए अवध विशेष रूप से उपयुक्त क्षेत्र था। यह ताल्लुकरेदारों का प्रांत था और है। यहाँ जमीदारी प्रथा अपने निक॒ृष्ठतम रूप में दिखाई देती है । पं» जवाहरलाल का कहना है कि क्रिसान- आन्दोलन कांग्रे स-आन्दोलन से विलकुल भिन्न था और इसका असहयोग-आन्दोलन से कोई सम्त्रन्ध न था । वे 'जुमीदार! शब्द के अभिप्राय को स्पष्ट करते हैं। वे कहते हैं कि ज़मीदार बड़े भूमिपति नहीं हैं । जिन प्रांतों में शैयतवारी प्रथा है वहाँ इसका अथे उस किसान से हे, जो अपनी ज़मीन का मालिक भी हो । यहाँ तक कि जिन प्रान्तों में विशेष प्रकार की ज़मीदारी प्रथा है, वहाँ इसका अभिप्नराय कुछ बड़े जमींदारों से है, कुछ हजारों मध्यवर्ग के सीर जोतने वाते किसानों से है, और कुछ उन लाखों व्यक्तियों से है, जो घोर दरिद्रता का जीवन विताते हैं। युक्तप्रान्त की जनगणना से यह बात स्पष्ट हो जाती हैं कि मोटे तौर पर पन्द्रह लाख व्यक्ति ऐसे हैं, जिनको ज़मीदार कहा जा सकता है । इनमें से ६६ प्रति- शत की स्थिति वही है, जो एक दरिद्रतम किसान की होती है। पूरे प्रान्त में बड़े-बड़े जमीन के मालिक भी पाँच हज़ार से अधिक नहीं हैं | केवल पाँच सौ को वड़े जमीदारों और ताल्‍लुके-




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