ज्ञान्सूर्योदय नाटक | Gyan Sooryodaynatak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४ जञानसूर्योदय नाटक ।
रामचन्द्र पीछे खख शान्त ओर परिपूर्णवुद्धि होकर तैरागी हो
गया था । पूवैकारमे जम्बृ्वामि, सुदीन, धन्यङुमार
आदि महाभाग्य भी पहले संसारका आरंभ करके अन्तम शान्त
হীন্ধহ सेसारसे विरक्त हो गये हँ । उसी प्रकारसे इस समय ये
सभासदगण अपने पुण्यके उदयसे उपश्ान्तजित्त हो रहे हैं |
अतएव इस विषयमे आश्वर्यं जौर सन्देह करनेके लिये जगह
नहीं है।
नटी--अस्तु नाम । अब यह बतलाइये कि, इन सभ्यजनोंका
चित्त किस प्रकारकी भावनासे अथवा किस प्रकारके दृश्यसे रंजाय-
मान होगा!
सूत्रधार--आरयें ! वैराग्य भावनासे अथोत् विरागरसपूर्ण
नाटकके कोतुकसे ही इन रोगोका चित्त आहादित होगा । श्रु-
गार हास्यादि रसोका आचरण तो आज कठ रोग खभावसे ही
किया करते हैं । उनका दृश्य दिखलानेकी कोई आवश्यकता नहीं
है। उनसे मनोरंजन भी नहीं होगा। क्योंकि जो भावना-जो दृश्य
अदृष्टपूवै होता दै, अथौत् जो लोगोंके लिये सबंथा नवीन होता
रे वही आश्चयकारी और हृदयहारी होता है । किसीने कहा भी
कि
अहषटपूर्वे खोकानां प्रायो इरति मानसम् ।
दद्यथन्द्रो द्वितीयायां न पुनः पूर्णिमोद्धवः ॥
अथोत्---जिस चीजको पहले कभी न देखी हो, लोगोंका मन
प्रायः उससे हरण होता है-उसीके देखनेके किये उत्सुक होता
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