ज्ञान्सूर्योदय नाटक | Gyan Sooryodaynatak

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Gyan Sooryodaynatak  by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ जञानसूर्योदय नाटक । रामचन्द्र पीछे खख शान्त ओर परिपूर्णवुद्धि होकर तैरागी हो गया था । पूवैकारमे जम्बृ्वामि, सुदीन, धन्यङुमार आदि महाभाग्य भी पहले संसारका आरंभ करके अन्तम शान्त হীন্ধহ सेसारसे विरक्त हो गये हँ । उसी प्रकारसे इस समय ये सभासदगण अपने पुण्यके उदयसे उपश्ान्तजित्त हो रहे हैं | अतएव इस विषयमे आश्वर्यं जौर सन्देह करनेके लिये जगह नहीं है। नटी--अस्तु नाम । अब यह बतलाइये कि, इन सभ्यजनोंका चित्त किस प्रकारकी भावनासे अथवा किस प्रकारके दृश्यसे रंजाय- मान होगा! सूत्रधार--आरयें ! वैराग्य भावनासे अथोत्‌ विरागरसपूर्ण नाटकके कोतुकसे ही इन रोगोका चित्त आहादित होगा । श्रु- गार हास्यादि रसोका आचरण तो आज कठ रोग खभावसे ही किया करते हैं । उनका दृश्य दिखलानेकी कोई आवश्यकता नहीं है। उनसे मनोरंजन भी नहीं होगा। क्योंकि जो भावना-जो दृश्य अदृष्टपूवै होता दै, अथौत्‌ जो लोगोंके लिये सबंथा नवीन होता रे वही आश्चयकारी और हृदयहारी होता है । किसीने कहा भी कि अहषटपूर्वे खोकानां प्रायो इरति मानसम्‌ । दद्यथन्द्रो द्वितीयायां न पुनः पूर्णिमोद्धवः ॥ अथोत्‌---जिस चीजको पहले कभी न देखी हो, लोगोंका मन प्रायः उससे हरण होता है-उसीके देखनेके किये उत्सुक होता




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