हिन्दी वीरकाव्य में सामाजिक जीवन की अभिव्यक्ति | Hindi Veer Kavya Me Samajik Jivan Ki Abhivyakti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपय-सुची चूडावम, प्रतिमास तुलाटान, সিনা वी शास्त्रोकत विधियाँ--स्पयवर, पूर्वानुरागाश्चित य्रुद्धातत विवाह, गाधव- विवाह, खड़ग विवाह, भासुर विवाह, विनिमय विवाह, भ्रय पद्धतियाँ, (ग) देव विवाहु--सगाई या वाग्दान, ठीवा व लगन, नहघुर, तेल चढाना,. उयटन, ववण एव मौर-वधन, कुं विवाहुना, भ्रगवानौ, तोरण एव कलश उदन, बारात वो जन वासा देना, ऐपनवारी, बारोठी या द्वाराचार, विवाह मंडप, चढ़ावा, भौवरें पलवाचार, लटवौरि, समधोरा, दहेज, काया फो माता की शिक्षा, बारात वे” विदा बे समय वा शिष्टाचार, घर झौर वधू का स्वागत, परछन गुलदवी वे पूजा, ककण जोलना, (घ) वियाह से सम्बद्ध कुछ ध्राप तथ्य--श्वसुरावय मदी भुरण रात्रि मताना, सालह दिन पश्चात्‌ पिता का पुत्री मो तिक्षा देन जाना, वधू को विवाहुबे समयविदान करवै एक वष वे मध्य गोना करता, चौथी या नव विवाहिता का प्रथम बार पितृ-गह प्राता, वरवे गुण, पयाग्रा कौ विनय मंगल या सुखी गहस्थ-जीवन की शिक्षा प्रदान करना, उत्तम वर-वधू थी प्राप्ति 4” लिए तप विवाह की अवस्था, बहु विवाह- प्रथा, (ड) राज्याभिषेक सस्कार (च) घत्येष्टि सस्वार-- सती प्रथा, विधवात्रा वी जीवन-यापन विधि, जौहर प्रथा, (५ त्योहार-- मदन महोत्सव समीना (रक्षा बधन) नव दुर्गा, पावली, ग्रावद्वन पूजा व्रत पंचमी, शिवरात्रि होली, দু त्याहार, (ज) श्रभिवादन श्रौर भ्राशोर्वाद को रीतियाँ-- छत) स्वागत सत्कार की रोतियाँ, निप्ण्ष । चतुर्य अध्याय घामिक स्थिति (क) विभिन घर्मावलस्वियों का पारस्परिक दष्टिफोण--(श्र) छिव, शक्ति भौर विष्णु के उपासकों से सोहाद, (श्रा) वदिक भ्रौर जन मतावलम्पियो वे कट्‌ सम्ब-व, (इ) दिद रौर मुसल माना का अ्रसहिष्णु दृष्टिकोण उनका सहिष्णु दष्टिकोण, (ख) परलोक सुधारने कौ कामना से पिये जाने वाते धाक षत्प--(भ्र) तीर्थाटन श्रौर दवी देवताभ्नो की पूजोपासना, (परा) पविव नदियोमे स्नान दान देना, (इ) तपस्या, {६} धमश्रथो का पठन शौर श्रवण, (उ) यन करना, (ग) विविध प्रकार के घामिक विश्वास और लोक मायताएँ-- श्षष्टा भ्रौर सष्टि, भ्रवतार वरदान और शाप, शपथ, भाग्यवाद क्मफ्न, पुनज-म और पुरुषाथ, ज्यातिष, शकुन अपशबुन, स्वप्न फ्ल, जत्र मत-मंत्रवल से असम्भव कृत्य कवर दिखान की क्षमता, युद्धों में तत्र मत्र का प्रयोग, भूत प्रेत, वरुण दूत तथा वीर और पोर, निष्कष । १४ पृण्स० २७७--३ ३ ३




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