मिटटी का चेहरा | Mitti Ka Chehra

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Mitti Ka Chehra by राजेश जोशी - Rajesh Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आखेट नीद को बेचकर सारे घोड़े कुर्लाँचे भरने को छोड़ दिए हिरन स्वप्नलोक में गशिकारियों के लिए प्रवेश निपेध' (शिकार खेलना मना है यहाँ जगह-जगह लगायी मैंने तस्तियाँ पर पैरो में इकटूठा दित भर की थकान और दिनभर रोती हुई शला सबने मिलकर पैदा किया मेरे ही रक्त से एक शिकारी भेरे स्वप्नलोक की चाँदनी रात में सेला उमने आखेट रातभर रातभर देखी मैंने हिरनो की चीत्कार हाँ देखी यह हिरनो की घौत्कार ! ! मिट्टी का चेहरा | 17




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