नागार्जुन रचना सचयन | Nagarjuna Rachana Sanchayan

Nagarjuna Rachana Sanchayan by नागार्जुन - Nagaarjunराजेश जोशी - Rajesh Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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14/नागार्जुन रचना संचयन भूमिका भी अदा करती है। वहाँ उनका अंदाज़ नज़ीर की तरह और विवेक भारतेन्दु की तरह होता है। उनकी राजनीतिक कविताएँ कई बार विवाद का विषय रही हैं। यह विवाद उनकी मूल वर्गीय राजनीतिक चेतना को लेकर उतना नहीं है जितना वह उनकी व्यावहारिक राजनीति की समझ और उस पर की गई टिप्पणियों को लेकर है। किसी भी रचनाकार की राजनीतिक दृष्टि उसकी पुरी रचना प्रक्रिया और रचना कौशल में अंतर्गम्फित होती है। इसलिए वह उसके शिल्प उसकी भाषा और उसके काव्य मुहावरे में भी प्रतिबिम्बित होती है। नागार्जुन की भाषा बहुत फैली हुई भाषा है। बहुत सघन सकुल और ब्रह्ुत उन्मुक्त भी। उसमें विभिन्‍न बोलियों के संस्कृत उर्दू और अंग्रेज़ी के भी कई शब्द मौजुद हैं। नागार्जुन की रचना भाषा शब्दों को ग्रहण करने के अर्थ में बहुत लचीली और समावशी है। उसके तल में बोलियां की सहख्रधारा का अंतर्प्रवाह सतत्‌ मौजूद रहता है। डॉ. रामविलास शर्मा ने नागार्जुन की भाषा के लिए लिखा है- हिन्दी भाषी क्षेत्र के किसान मजदूर जिस तरह की भाषा आसानी से समझते और बोलते हैं उसका निखग हुआ काव्यमय रूप नागार्जुन के यहाँ है। जीवन की भाषा को पकड़ने में उनके कान बहुत चौकन्ने हैं और स्मृति विलक्षण। इसलिए उनकी भाषा में मिथिला की माटी की गंध और गंगा तट का ही संगीत नहीं शिप्रा के तट की मालवी मिठास और बेतवा के तट की बंदेली ठउसक भी सनाई पड़ती है। एक कविता में अपने भाषा सम्बन्धी आग्रह का ग्पप्ट करते हुए उन्होंने लिखा है-हिनदी की है असली रीढ़ गेँवारू बोली। मिथको के साथ नागार्जुन के व्यवहार में भी उनकी सांस्कृतिक और राजनीतिक ट्रष्टि को देखा -समझा जा सकता है। नागार्जुन ने अपनी मूल राजनीतिक दृष्टि को जन के साथ गहरे और आत्मीय जुड़ावों के बीच अर्जित किया था। उनकी कविता में परिचित अपरिचित और अल्पज्ञात व्यक्तियों की उपस्थिति किसी भी अन्य कवि से अधिक है। इन परिचितों में कालिदास भारतेन्दु रवीन्द्रनाथ निराला जैसे अग्रज रचनाकार हैं गोर्की लू शुन ब्रेष्ट आदि जैसे विदेशी रचनाकार हैं केदारनाथ अग्रवाल शैलेन्द्र हरिशंकर परसाई रेणु राजकमल चौधरी जैसे अपने समकालीन और बाद की पीढ़ी के रचनाकार हैं। गांधी नहर नाग भूषण पटनायक जैसे कई युगपरुष हैं। अपने समय के कई राजनीतिज्ञ हैं और किसी अनहोनी घटना से अचानक चर्चा में आ गए कई सामान्य लोग हैं। इस एलबम में बीसवीं सदी के पचास-साठ बरस के अनेक चेहरे हैं। लगभग सभी महत्त्वपूर्ण राजनीतिक सामाजिक घटनाओं के दूश्य हैं । व्यक्तियों पर लिखी कविताओं में नागार्जुन की अंतर्दष्टि के कई पक्ष उजागर होते हैं। नागार्जुन मात्र राजनीतिक कवि नहीं हैं। इस महादेश की विपुल और विविधरंगी प्रकृति का ऐसा अनुगायन जैसा नागार्जुन की कविताओं में संभव हुआ है बहुत कम ही कवियों में संभव हो सका है। बादल उनकी कविता का जैसे एक केन्द्रीय पात्र है। इस बादल की जल नाड़ियाँ बहुत टूर -दूर तक फैली हैं। संस्कृत की क्लासकीय परपरा में अगर इसका एक छोर है तो दूसरा ठेठ लोक से जुड़ा है। उनकी आधुनिकता परंपग




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