नया - संसार | Naya-sansar

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Naya-sansar by स्वामी सत्यभक्त - Swami Satyabhakt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{८ ७ ভা অজিত শুর অহ दिखाया गया। घर के आगे और सड़क के किनारे को छपी में तो हम छान खड़े द्वी थे । इसके बाद का बड़ा-सा कमरा वैठक-खाना था | उसके बगल में एक छोटान्सा कपरा और था, जिसमें मेशा सामान रख दिया गया था | शायद यह अतिविंगृइ था। इसके भीतर दो पछंग, दो टेवुडे और चार कुर्मियोँ रण्खी हुई थीं। इस के पीछे रसो३-घर था और एक छ्थरी थी । बाद में छेटा-सा औँगन और आगन फे बाद एक तरफ संडास ओर दुसरे तरफ स्नानागार तथा दोनों को जोढने वा! एर छपयी थी | मकान दुमजिदा था । अतियि-गृइ के ऊपर क कमरे मे दम्पति का शयनागार था, और बैठक-खाने के ऊपर का ,कमत बच्चों का शयनागार । हरएक बच्चे की एक पलग, एक; ठेबुक और कुसौ मिली हु थी । दगगहि के झयदागार ৯ লগত में एक कम्य नैर ঘা) निंत्तमे कुछ साममन वा और बच्चों के कमरा के कग> में गची थी | यड्‌ एक सप श्रेणी - 3 टन्ब का घर था। দুল ঘ माद्धूम हुआ क्रि कुठुम्दी लोगों की 2: इसी रूप भे सं जगड़ मकार লিন हैं। देख मर मे पक्के मद[न बन गये हैं। अब किसी को कच्चे नौर छांटे मकानों थे नई रहना एडता , मैने मन ही দল হা” লহ টা ভা बालिद्वारी । हम लोग ऊपर का मकान देख ही रहें थे कि श्रीमतीजी में मेरे मित्र मे कड्ा- प्रमेत्रजी, देखो ते। फी१ नीचे बुला रहा है | अब मुशे मप्टूम हुआ त्ि यहापा पतिन्पज्ञी एक दूरे को प्रमिन्र और प्रभित्रा कहत हूँ । मुश्न ये शब्द खूब रुच । सचमुच पति-पत्नी एऊ दुसरे के प्रमित्र- उत्कृष्ट मित्र हैं । खेर | हम छोग নবি उररे।




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