आदिपुराण समीक्षाकी परीक्षा | Aadipuran Samishaki Pariksha

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Aadipuran Samishaki Pariksha  by लालाराम जैन - Lalaram Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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উজান উন कयाकी सर्मौक्षाकी परीक्षा । ११ श््दसे दो भिरा निकठ्ते है काठंवौ बेहुपना भौर मोगसंवषी वेहइपना | यदि काल- আনন बैहदपना ठे तो भी छचितागदेवकी धायु एक सागतकी थ जो क अन॑तान॑त संसारी धपैक्षा कुछ भी नहीं है वल्कि न कुछके वरावर है जौर वह भी बेहद नहीं समर्याद है यदि देवांगना आदि भोगेपभोग सामग्रीका विशेषण वेहद शब्द किया जाय तो भी ठीक नहीं है क्योंकि वह भी सब सामग्री समयाद्‌ है परिगणित हैं फ़िर भी जो बाबू साहबने बेहद शब्द छिख्ा है उसमें काछ और भोगोंकी सामग्रौकों श्ूठा ठहरानेका प्रकन किया है। कथामें यह शब्द कही भी नहीं आया है केबल बाबूसाहवका मनगहंत है और ऐसे ही मनगहंत शब्दोसे की हुई समीक्षा भी मनगढंत सिद्ध होती है | भागे कर तो भापने बी ही बुद्धिमत्ताका परिचय दिया है उससे यह भी पता छगता है कि कर्मसद्धांततो आप बिल्कुल नहीं जानते या मानते नहीं | जिसप्रकार प्रेरक रोग নি विद्याधिकों पढनेकी प्रेणा करते हैं और चाहते हैं कि वह उंची शिक्षा प्राप्त करे परतु षह विधाथी बुद्धिके मन्द होनेसे अथवा जन्य किसी कारणसाम्के मिक जानते ऊंची शिक्षा प्राप्त न कर सकनेके कारण अधवीचमे ही रह जाता है भौर उसके इसतरह अधवीचमें रहनेका दोप उस प्रेगकपर नहीं छगा सकता इसीतरह चारणमुनिन महावल्के मोक्षमागपर जानेके ডিই चाहा धा तदनुसार बह मेक्षमगमे ठग भी परंतु सब तरहकी योग्य सामग्री न मिलनेसे वह कर्मोंको नष्ट तो नहीं कर सका परंतु मोक्षमार्ममें रहकर भी बीचकी हाल्तमें आ पड़ा | उससे पूर्ण त्याग न हो सका और तपथ्चरणके साथ साथ अंतरंग कपायांश रहनेके कारण वह देवायुका वैध कर देव हुआ ऐसी हार्त्मे क्या तो चारणमुनिका अपराध है क्या छयैुद्ी है भैर किसने उते छम पटक है न चाएणमुनि पटकते भए ये जर न ख्यं शुद्ध कतु वैसा ही आयुवंध होनेके कारण उसको ऐसी अवस्था हुई परंतु बाबूसाहब या तो इन बातोंकों भूछगमे या पुप्वपाप भायुवध भादिको माननेके ढिये तैयार नहीं है इसलियि आपने बढा भारी शोक प्राट किया है । अच्छा होता यदि बाबूसाहब यह ख़ुछासा, कर देते कि तपश्वरणके साथ साथ अंतरंग कपाय रहनेपर मध्यवर्ती परिणाम होते हैं या नहीं यदि होते है तो उनसे भ्ठ होता है या नहीं यदि होता है तो पृण्यपापमेंसे ,कौनसा ! यदि पुण्यालव होता है तो उससे संपदाओंके सिवाय और क्या मिल सकता है । यदि पृष्यका फछ संपदा नहीं है तो क्या दर्ता है क्या बात है सो बाबूसाह॒वंन भी तो बतलया होता | भागे चछकर आपने समीक्षकपनेके अमिमानसे बडा हौ अफसोस प्रगठ किया है और लिखा है कि इन कथाप्रैथोसे जैनधर्मका रूप कुछसे कुछ हो गया है परंतु बाबूसाहबमे यह नही वतलया है कि कयाप्रंथोंका फल कैसा होना चाहिये उनकी शैले कैसी होनी चाहिये आदि | प्रायः कथामरथोमे गुद्धेपयोगस कर्म नष्ट करना शुभोपयोगसे पुण्यालव होना और भश्युभोपयागसे पापात्षव होना बत- लाया है। सूक्ष्मदश्सि यह भी बतलाया है कि जितने णमे मोपयोग है उसते तव ही होता ঘন वा निजरा नहीं जैसा कि पुरुषार्थ लिद्रयुपायमे लिखा है। লসযমিই ই্তরিণীগাউীন মলি নান |




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