आनंद की पगडंडियाँ | Aanand Ki Pagdandiyan

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Aanand Ki Pagdandiyan by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्य आरस्भ। ९ कनक ~ ~~~ ~ आया हुआ विचार मुप्यके चरितका आरम्भ है । विचार अपनी जई मस्तिष्क जमाता है और फिर उनके ग्रकाशकी জীহ জাম और चरितके रूपमें ढकेलता है जिससे स्वभाव ओर भाग्य संघटित होते हैं। घुणित, ऋधान्वित, ईंष्यौपूर्णे, लोभप्रचुर और अपवित्र विचारोका उत्पादन अनुचित आरम्म है, जिससे दु.खदायक फल मिलते है। प्रेमप्रचुर, नम्र, दयाडु, स्वायैशून्य और पवित्र विचारोंका उत्पादन उचित आरम्भ है जिससे आनन्ददायक फल मिलते है | यह नियम बहुत शुद्ध, सीवा ओर सव्य है। परन्तु मनुष्य इसको अक्सर भूल जोति और तुच्छ समझते है । वह माडी-जो जानता है फि साव्रधानीक साथ कैसे, कव और कहाँ वीज बोया जाय--उत्तम फल प्राप्त करता और वुक्षविद्याका अधिकतर ज्ञान सम्पादन करता है। जो उत्तम आरम्म करता है, उसकी आत्मा उत्तम फसलसे आनन्दित होती है | जो मनुष्य शक्तिमान, उपयोगी और पुण्यमय विचारोंके बीज अपने मस्तिष्कम सुप्रकार वोनेकी रीतिका ध्यानपूवक अध्ययन करता है, वह जीवनमें स्रोत्तम फल प्राप्त करता ओर सत्यका अधिकतर ज्ञान संकलित करता है। सर्वोत्तम आनन्द उसीको प्रात होता है, जो अपने मस्तिप्फमे पवित्र और उच्च विचार प्रविष्ट करता हे । दध विचारि द्ध ओर सत्य काये उत्पन्न होते हैं, सत्य- कायीसे शुद्ध जीवन लब्ध होता हे ओर शुद्ध जीवनसे सबीनन्द সাম होता है । जो मनुष्य अपने विचारोकी बनावट ओर उद्देश्यकी ओर ध्यान देता है और दूषित विचारोंको वाहर निकालकर उनके स्थानमे सहि- चाररोकों धारण करनेकी प्रतिदिन चेष्ठ करता है, वह अन्त इस ज्ञानको प्राप्त कर छेता है कि उन परिणामों ओर फर्लेके आरम्म--




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