आतम-बोध | Aatm Bodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.21 MB
कुल पष्ठ :
36
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)*हससे पूर्वकाल में होने वाले ऋषियों से हम ऐसी ही व्याख्या
सुनते आए हैं ।* अपने उत्तर की पुष्टि एवं शिष्य को संतुष्ट करते हुए
ऋषि पुनः कहते हैं कि हमसे पूर्वकाल में जो ऋषि हुए हैं, जिन्होंने आत्म-
बोध किया है उनसे भी हमने यही सुना है जैसा मैंने तुम्हें उपदेश दिया
है। जिसने भी जाना है उसने यहीं कहा है। आत्म-बोध सर्वथा मौन में
उतरा है, उसकी कोई अभिव्यक्ति संभव नहीं ।
यद्वाचानभ्युदितं येन... वासश्युद्यते ।
तंदेव ब्रह्म त्व॑ विद्धि नेद॑ यदिदमुपासते । 1४
यन्मनसा न मनुते येनाहुर्मनो मत्तमू ।
तदेव ब्रह्म त्व॑ विद्धि नेद॑ यदिदमुपासते 11४
यच्चश्षुषधा न पश्यति येन चक्ष थि पश्यति ।
तदेव ब्रह्म त्व॑ विद्धि नेद॑ यदिदमुपासते | 1६
यच्छोचेण न शूणोति येन श्रोजभिद_ श्रुत्तमू ।
तदेव ब्रह्म त्व॑ विद्धि नेद॑ यदिदमुपासते 11७
यत्प्राणेन न प्राणिति येन प्राण: प्रणीयते ।
तदवे ब्रह्म त्व॑ विद्धि नेद॑ यदिदमुपासते । 1८
“जो वाणी से प्रकट नहीं किया जा सकता अपितु जिससे वाणी
प्रकट होती है; उसे ही तू ब्रह्म जान । यह लीक जिसकी उपासना
करता है उसको नहीं /””
*'जिसका बन से मनन नहीं होता अपितु जिससे मन मनन करता
है; उसे ही तू ब्रह्म जान । यह लोक जिसकी उपासना करता है उसको
नहीं रा
“जिसकी नेत्र से नहीं देखा जा सकता अपितु जिससे नेत्र देखते
हैं; उसे ही तू ब्रह्म जान । यह लोक जिसकी उपासना करता है उसको
नहीं 7”
आत्-बोघ 17
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