Aatm Bodh by Sudhir 'Naman'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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*हससे पूर्वकाल में होने वाले ऋषियों से हम ऐसी ही व्याख्या सुनते आए हैं ।* अपने उत्तर की पुष्टि एवं शिष्य को संतुष्ट करते हुए ऋषि पुनः कहते हैं कि हमसे पूर्वकाल में जो ऋषि हुए हैं, जिन्होंने आत्म- बोध किया है उनसे भी हमने यही सुना है जैसा मैंने तुम्हें उपदेश दिया है। जिसने भी जाना है उसने यहीं कहा है। आत्म-बोध सर्वथा मौन में उतरा है, उसकी कोई अभिव्यक्ति संभव नहीं । यद्वाचानभ्युदितं येन... वासश्युद्यते । तंदेव ब्रह्म त्व॑ विद्धि नेद॑ यदिदमुपासते । 1४ यन्मनसा न मनुते येनाहुर्मनो मत्तमू । तदेव ब्रह्म त्व॑ विद्धि नेद॑ यदिदमुपासते 11४ यच्चश्षुषधा न पश्यति येन चक्ष थि पश्यति । तदेव ब्रह्म त्व॑ विद्धि नेद॑ यदिदमुपासते | 1६ यच्छोचेण न शूणोति येन श्रोजभिद_ श्रुत्तमू । तदेव ब्रह्म त्व॑ विद्धि नेद॑ यदिदमुपासते 11७ यत्प्राणेन न प्राणिति येन प्राण: प्रणीयते । तदवे ब्रह्म त्व॑ विद्धि नेद॑ यदिदमुपासते । 1८ “जो वाणी से प्रकट नहीं किया जा सकता अपितु जिससे वाणी प्रकट होती है; उसे ही तू ब्रह्म जान । यह लीक जिसकी उपासना करता है उसको नहीं /”” *'जिसका बन से मनन नहीं होता अपितु जिससे मन मनन करता है; उसे ही तू ब्रह्म जान । यह लोक जिसकी उपासना करता है उसको नहीं रा “जिसकी नेत्र से नहीं देखा जा सकता अपितु जिससे नेत्र देखते हैं; उसे ही तू ब्रह्म जान । यह लोक जिसकी उपासना करता है उसको नहीं 7” आत्-बोघ 17




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