स्वामी रामतीर्थ ग्रंथावली | Swami Ramtirth Granthavali

Book Image : स्वामी रामतीर्थ ग्रंथावली  - Swami Ramtirth Granthavali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ ७ 1 याना समाप्त करके भगत जी जघ कटास यज स पिरड दादन खा को वापिस झांये तो उन का चित्त यहां दी रब जाने को चादते लगा | और चहां उठेरे का काम अधिक देख कर उन्हों ने उसी चुक्ति की दुकान खोल लीं, और स्थाई रूप से चसना शुरू फर लिया। | इस नगर (पिंड दादन खां) मे फुशती (म्ल युद्ध ) की चज़ेश का राज नहीं था । केवल गलियों श्रौर वुगदर इत्यादि से व्यायाम करते थे। भगत जी इस कुशती के व्यवसाय में अति निपुण तो थे ही, अपने अभ्यास ( शोक ). फे कारण इस नगरमे भी कुशती की चर्श का रिचाञज डाल दिया और इस कास के लिये एक बड़ा अखाड़ा बनवा डाल( | इस अखाडहे में चद आप भी प्रति दिन मल्ल-युद्ध यस्ते मौर फट एक अन्य शुबरकतों को भी खूब घरज़श कराते হল की देखा देखी इन के अखाड़े की तर्ज पर उस कस्बे ( नगर ) में कई एक और अखाड़े भी यन गये। थोड़े फाल के पाद्‌ उन्द प्क घडे शक्तिशाली मस्ले ( पेहल्वान ) से मर्ल-युद्ध करना पडा । यद मस्ल भगत जी स द्विशुये कद्‌ का शरीर मोटा ताज़ा था, तथापि अखाड़े भे भगत ज्ञी ने छसे खूब पिछाड़ा। और एक घंदे के अन्दर २ चित्त कर दिया। यह आश्चर्यजनक जीत भगत जी को शारीरिक चल से नहीं शुई थी बालिक, जैसा उन्हों ने वर्णन किया, यद् सब परमात्मा पर पूर्ण विश्वास रखने का परिणाम था। इस युवावस्था में सगत जी जैसे कि वलवान और पद्दल्वान (मल्ल) ये) वैसे द चित्त कै वड शर्‌ चर ओर उदार भथ।जे कुछ कमाते चद्द कुछ खुद खाते ओर बहुत खी रकम साधु महात्माओं की सवा म खर्च कर देते थे । और इरादे (संकल्प)




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