प्रमेय कमल मार्तण्ड | Pramey Kamal Martand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १३ ] शब्दाम्भोरुह भास्कर! प्रथित तकं ग्रन्थकार. प्रभा- चन्द्राख्यो मृनिराज पण्डितवरः श्री कुण्डकुन्दान्वयः || श्रा० प्रभाचन्द्रको इस लेखमे जो विशेषण दिये हैं, उपयुक्त है। वास्तवमे वे शब्दरूपी कमलो- को [ शब्दाभोज भास्कर तामक ग्रन्थ ] खिलाने के लिये सूर्थके समान और प्रसिद्ध तक ग्रन्थ प्रमेय कमल मार्तण्ड के कर्ताहै। जेन न्यायमे ताकिक दृष्टि जितनी इस भ्रन्थमे पायी जाती है भ्रन्यत्त नही है। प्रमेयकमल मार्त्तण्ड, न्याय कुमूद चद्र, ,शब्दाम्भोज भास्कर, प्रवचन्सार सरोज -भास्कर, तत्त्वार्थ- वृत्ति पदविचरणा, ये इतने ग्रन्थ प्रभाचद्राचायं द्वारा रचित निविवाद रूपसे सिद्ध हुए है । १, प्रसेयकमलमात्त ण्ड--यह प्राचार्य -माणिक्यनंदीके परीक्षामुख ' सुत्रों-टीका स्वरूप ग्रन्थ है । मत मतातरोका तकं वितककरि साथ एवं पूर्वं पक्षके साथ निरसन किया'है । जैन न्‍्यायका यह भ्रद्वितीय ग्रन्थ है । अपना प्रस्तुत ग्रन्थ यही है, जेन दर्शनमे इस कृतिका बडा भारी सम्मान है । २ न्यापकुमुदचन्द--जसे प्रमेयसूपी कप्लो को विकसित करनेवाला मात्तण्ड सदश प्रमेय कमल मार्तण्ड है वसे ही स्यायरूपी कुमूदोको प्रस्फुटित करनेके लिये चन्द्रमा सहश न्याय कुमुदचन्द्र है । ३ ततत्वाथंवृत्ति पद विवरण-यह्‌ ग्रन्थ उमा स्वामी श्राचयं दारा विरचित तत्त्वाथें सूत्र पर रची गयी पूज्यपाद श्राचयंकी कृति सवर्थ सिद्धिकी वृत्ति है । वैसे तो पूज्य पादाचायंने बहुत ,विशद रीत्या सुचोका विवेचन किया, किन्तु प्रभावन्द्राचार्यने सर्वार्थंसिद्धिस्थ पदोका विवेचन किया है। ४. शब्दाम्भो जभास्कर--यह शब्दसिद्धि परक ग्रन्थ है। शब्दरूपी कमलोको विकप्नित करने, हेतु यह ग्रन्थ भास्कर वत्‌ है । ये स्वथ पुज्यपाद भ्राचायेके समान वयाकरणी. ये, इसी कारण पूज्यपाद द्वारा रचित जेनेन््र व्याकरण पर शब्दाम्भोज भास्कर वृत्ति रची ^ ५ प्रवचनसारसरोजभास्कर-जंपे अन्य ्रन्थोको केमल ओर कुमुद सज्ञा देकर प्रपनी कृतिको मार्तण्ड, चन्द्र बतलाया है, वेसे प्रवचनसार नामक कु दकु द आ्राचार्यके प्रध्यात्म ग्रन्थको सरोज सज्ञा देकर भ्रपनी वृत्तिको भास्कर बतलाया । झापका ज्ञान न्याय और शब्दमे ही सीमित नही था, श्रपितु आत्मानुभवकी ग्रोर भी अग्रसर था । जिन गाथाओकी वृत्ति भ्रमृतचन्द्राचार्य ने नही की उन पर भी प्रभाचन्द्राचायंने वृत्ति की है । समाघधितन्त्रे टोका आदि भ्रन्य ग्रन्थ भी आपके द्वारा रचित माने जाते हैं किन्तु इनके विषयमे विहटानोका एक मत नही है। इसप्रकार प्रभाचर्द्राचार्य माध्िक विद्धान्‌, ताकिक, वंयाकरण श्रादि पदोसे सुशोसित श्रेष्ठतम दि० श्राचार्य हुए, उन्होने अपने ग्रुणोद्दारा जैन जगतको श्रनुरजित किया, साथ ही भ्पनी कृतियां एवं महाव्रतादि झ्राचरणद्वारा स्वपरका कल्याण किया । हमे भाचायेंका उप- कार मानकर उनके चरणोमें ततमस्तक होते हुए याचना करनी है कि हे ग्रुर्वेव ! आपके प्रन्थोमे पति हो एवं हमारी ब्रालसकल्याणकारी प्रवृत्ति हो 1




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