काव्य - दर्शन | Kavya Darsan

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Kavya Darsan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्राव्य-द्शेन গমমন कोलाइल, पीड़नमय विकल, प्रवर्तन महायन्त्र. का; क्षण भर भी विश्राम नहीं है प्राण दास है क्रिया-तत्त्र का। भाव-राज्य_ के सकल. मानसिक सुख यो दुख में बदल रहे हैं; हिंसा. गर्वोन्नत हारौ मे ये श्रकेडे श्रु यदस रहे हैं। ये भौतिक सदेह कुछ करके जीवित रहना यहाँ. चाहते; भाव-राष्ट्र .के नियम यहाँ. पर दण्ड वने हैं सब कराहते। करते, है संतोष नहीं है जैसे... कशाघात प्रेरित से-- प्रतिक्षण करते ही जाते हैं भीति-विवश ये सब कंपित से} नियत्ति अलाती कर्म-चक्र यद्‌ तृष्णा-जनित ममत्व-वासना; पाशि-पादमय पंच-भूत्त की यहाँ. हो रदी है उपासना । यहाँ... सतत संघर्ष, विफलता कोलाइल ' का यहाँ. राज है; अंधकार में दौढ़ लग रदी मतवाला यदह सव समाज है। বল হী হই কন बना कर कमो की भीपण परिणति है; श्राकत्ना की रीत पिपासा | ममता की यह निर्मम गति ६। হাঁ शासनादेश घोपणा विजयी. की हुकार सुनाती;




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