दिवाकर दिव्य ज्योति | Diwakar Divya Jyoti [ Vol. - 20 ]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)की ऽ
दौड़ता-दौड़ता द्वाथी जब एक तालाब में जाने लगा तो रानी
को प्राशान्तक संकट नज़र आया । अकस्मात् हाथी की गति भी
धीमी पडी सौर रानी को एक वचने का उपाय सु गया । श्रवसर
पाकर वह हाथी की पूछ के सहारे क्विनारे पर उतर गई ओर बह
आगे चला गया।
रानी एकाकिनी और श्रसहाय है! कहाँ राजा, कहाँ सेना ओर
फहाँ वह आ फेसी ! वह 'हे नाथ, रक्षा करो' इत्यादि विज्ञाप करती
हुई, समीप के एक पेड़ के नीचे पहुँची ओर कुछ आश्वस्त होकर
पंचपरमेष्ठी मंत्र का ध्यान करने लगी।
होती, होती है घैय धमे की,
संकट में पहचान ।
जैसे सोने की परीक्षा धधकती हुई आग में होती है, उसी
प्रकार घैये की परीक्षा संकट के समय ভুগ্লা करती है ।
थोड़ी देर वाद् रानी एक पगेडंडी के सहारे एक नगर में जा
पहुँची । वहाँ चन्दनबालाजी की सत्तियों का चौमासा था। रानी
पद्मावती वहाँ स्थानक में पहुँची। सब शावकों और श्राविकाओं ने
उसका स्त्रागत किया ओर वह आनन्द॒पूर्वंक वहाँ रहने लगी। कुछ
दिन वाद द्वी रानी ने दीक्षा अंगीकार करने की अभिलापा प्रकट की
ओर संघ ने शान के साथ दीक्षा-उत्सव किया । अब महारानी
पद्मावती महासती पद्मावती बन गर ।
समय पाकर गमं बड़ा हु शोर पद्मावती के चेहरे पर गर्भ के
लक्तण प्रकट हुए । गुरुणीजी ने एक दिन पूछा-तू दिन पर হিল
पीली क्यों पड़ती जाती है ? तब पद्मावती ने उत्तर दिया-मैं गसे-
चती हूँ ।
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