हिंदी और मलयालम में कृष्ण भक्ति काव्य | Hindi Aur Malyalam mein Krisha Bhakti Kavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
326
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मलयाजम भाषा के पद्च-साहित्य की रपरेया १४
करते-फरते केरल प्रदेश के मध्य स्वित 'त्रिश्चिवपेरूर नामक स्थान में पहचा । वहां उसने
देखा कि एक मन्दिर में एक वेश्या चन्द्रोत्तव मनाने जा रही है। उसके हाथ म सुन्दर
नुसुमो का ग़च्छा भी था। उसे देखकर गन्धर्व ने समझे लिया वि जिस सुगन्वि का अनु-
भव उसे तथा उसकी ध्रियतमा को हुझा था, उसका उद्गमस्थान यही कुसूमग्रच्छ है ।
गन्धर्व बहा करीब छह दिन रहा झौर वापस चला गया। उसने गव समाचार अपनी प्रिय-
तमा को बह सुनाया । यही सक्षेप में चन्द्रोत्मव को कया है । केरल के प्रताप, वैभव प्रादि
का सुन्दर वर्णन कवि ने इसम किया है ।
काबि की कवन-कला-चातुरी के कई उदाहरण इसमें पाए जाते हैँ। स्व्रभावोफित,
তমা, ভংসঞ্বা ग्रादि प्रलकारों का उनम प्रयोग इसमे हुआ है। इस उत्तम कृति के
सार्वभौम कचि का नाम प्रव तक जाना नही जा सका है । वे जाति के नपृतिरि ग्राह्मण थे
'वामाक्षी-स्तुति , 'लब्मी-स्त॒ति' जमे बहुत से स्तोत-ग्रथ भी इस कान मे लिये
गए है । महाकाव्यों के ्तिरिवत मलबालम में मणिप्रवाल घैली में कई मुवतक काव्य भी
रये गए है । प्रधिकाग दतिया स्ृगारिरम-प्रपान ह । कन्याकुमारी मे लेकर गौणं तक रहने
याते गजाथो, मन्दिरो के देवो श्रीर सुन्दर्य देः ग्राघार पर मुक्तक काव्य रचे गए हैं ।
पनद्रहुयी सदी मे पद्य के साच-साय गद्य-्ग्नन्थों का भी ग्रच्छी सरपा में निर्माण हुप्रा है
प्रस्तु प्रप्रासगिक होने के कारण गद्य-प्रवो की चर्चा यहा करना ध्रनुचित होगा ।
सन् १६०० ६० में फेरल के कई महान् लेखको ने सस्कत में कई पुस्तकें लिएी है ।
उसी समय मणिप्रवाल शैली में कई रचनाएं रची गई है। मजमगलम् नारायण नपूतिर
मे मस्त तथा मलयासम के पदों को मिलाकर নিগিন হলী में करोच बारह पुस्तकों
लियी हैं। उनम नपय चम्पू হাজবন্লানলীনদ' चाणयुद्धम् प्रादि ग्रन्यं उत्ष्ट माने
जाते हैं। 'वीटियपिरहम् श्रयारप्रपान काव्य है । उसे सर्वोच्तिप्ट वाच्य कहे तो तनिक
भी प्रत्युवित न होगी। पटितो का मत्त है कि इस प्रवार का एक भी शयार-द्ाब्य च्रन्य
भाषाप्रों में नही मिलता । उस श्रमय तक पीराणिक कयाप्रों के प्राघार पर ही चम्पू ग्रप
लिखे गए थे परन्तु 'कोटियदिरहम्' घोर 'राजरत्नावतीयम् दोनो प्रपवाद हैं । शत इनके
रखधिता विगेष हूप से पक्लादर के पाप्र हूँ ।
ब्राह्मणि पाट्ट (ब्राह्यणियो का गीत) --
बाद्यणिया मन्दिरों मे काम करने वाली एक जाति-विशेव जी स्प्रिया है ই ফা
पूजा रे पयर् पर प्रर नायर' जाति ने तोगो वे वियाह के समय एक রাহ রা লা
ये स्वरया गाया करती है । एन्टी মীনী কা दाह्म सि पाटुट (गीत) कहते है । येदोच्यारण
में समान ही दस गीत को गाया जाता है । सोलहवी सदी मे इसका बड़ा प्रयार था ।
“विध्युमामावरितम्, 'सती-परिणयम्, नृगमोक्षर মাহি স্কুল আলা के सुर्दर समाहार
है। रामप्रोडा पर ग्राह्म णिन्यीत विये गए #, जो प्रत्यन्त सुस्दर माने हाते हूँ। बोच्चिन
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