श्री रामकृष्णवचनामृत | Shri Ramkrishna Vachnamrat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दक्षिणेश्वर सें श्रीरामकृष्ण का जन्स-महोत्सव ११ नही रख सकता । जनक राजा साधन-भजन के वाद सिद्ध होकर ससार मे रहे थे। वे दो तलवारे घ॒माते थे--ज्ञान और कर्म ।” यह कहकर श्रीरामकृष्ण गाना गा रहे है--- यह ससार आनन्द की कुरिया है -- आदि । तुम्हारे लिए चेतन्यदेवने जो कहा था, जीवो पर दया, भक्तो की सेवा ओर नाम का संकीर्तन । तुम्हें क्यों कह रहा हूँ ” तुम एक व्यापारी की दूकान मं काम कर रहे हो । अनेक काम करने पड़ते है, इसलिए कह रहा हूँ । तुम आफिस मे चूर बोलते हो, फिर भी तुम्हारी चीजे क्यो खाता हूँ ? तुम दान, ध्यान जो करते हो | तुम्हारी जो आमदनी है उससे अधिक दान करते हो । बारह हाथ ककडी का तेरह हाथ वीज । कजूस की चीज मे नही खाता हूँ । उनका धन इतने प्रकारो से नष्ट हो जाता है--मामला-मुकदमा मे, चोर-डकंतो से, डक्टरों मे, फिर वदचलन लडके सव धन उडा देते है, यही सब है। “तुम जो दान, ध्यान करते हो, बहुत अच्छा है। जिनके पास धन है उन्हें दान'देना कतंव्य है। कजूस का धन उड जाता है। दाता के धन की रक्षा होती है, सत्कर्म में जाता है। कामारपुकुर मे किसान लोग नाला काटकर खेत में जल लाते है । कभी कभी जल का इतना वेग होता है कि खेत का वर्धि टूट जाता है और जल निकल जाता है, अनाज वरबाद हो जाता है, इसीलिए किसान लोग वॉध के बीच बीच में सूराख बनाकर रखते है, इसे 'घोघी कहते है। जल थोड़ा थोड़ा करके घोघी में से होकर निकल जाता है, तव जल के वेग से बाँध नही टूटता और खेत पर की मिट्टी नरम हो जाती है। उससे खेत उबर वन




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