ऋग्वेद संहिता [भाषा भाष्य] [पंचम भाग] | Rigved Sanhita [Bhasa Bhasya] [Part -5]
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
835
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५ 9
ष রি
स्री-पुरुषो के कर्चव्य | जितेन्द्रियों के कत्तच्य । ( १३ ) दिन-रात्रिवत्
पत्ति-पत्नी जनों के कर्तव्य | ( २१-३२ ) भावी जामाता के अति आदर ।
( २६-२७ ) प्रसु से रेश्वयं की याचना 1 ( पर ४०९४६१९ )
सू° [ २७ ]--क्तानी पुरुप का पुरोहित पद् पर स्थापन । विद्वान से
ज्ञान की याचना । नाना प्रकार के उत्तम वीर विद्वान् पुरुषों के कर्चज्य ।
(५१ ) राजा के कर्तव्य 1 ( १२ ) विद्वानों के कर्तव्य । ( १५ ) राष्ट्र
कते प्रति उनके कत्तेन्य 1 ८ प° ४१९-४२८ )
सु° [२८] -३र देवगण | राष्ट्र के ३३ प्रसुख शासक | (२)
वरुण, मित्र, अर्यमा । तीन प्रधान पद्। उन के कत्तव्य । (प°
४२८-४२९ )
सू° [ २९ ]-- विश्व के एक, द्वितीय अध्यक्ष का वर्णन । उसके
महान् अद्भुत्त कर्म । (८ ८-९ ) जीव जर प्रयु का प्रकृति के
साथ वर्णन | ८ प° ४२९-४३२ )
सू० [ ३० |राष्ट्र में प्रजा जनों के सदश जीवों का वणन ।
( २-४ ) राष्ट्र-शासक रूप ३३ देवों का वर्णन! उनसे रक्षा की प्रार्थना ।
( प° ४३२-४३४ )
सू० [ ३६ ]-यज्ञष और यज्ञमान की प्रशंसा । उस के क्त्य ।
( ६-७ ) पक्षान्तर सें राजा के प्रजा के प्रति कर्तव्य । ( ४ ) प्रजावती,
खी की अभि से तुलना । (७ ) पति-पत्नी के कत्तंव्य । ( ३०-३१
पूषा परमेश्वर से पाथना । (१२-१४ ) विद्वानों से प्रार्थना ॥
( १५- ६८ ) उत्तस प्रभु भक्त का प्रभाव । यज्ञशील का वैभव, बल:
जोर सामव्य 1 ( प्० ४३४-४४० )
तृतीयोऽध्याय
এরা উদ [३२ ]--विद्दान् पुरुषों के कर्तव्य का उपदेश । (२) ज्ञासक
के शुण 1 ( ३ ) विद्युत्वत् सेनापति वा राजा के कर्तव्य । शतु-विजय
का दश । (६) व्यापार का उपदेश | হালা জা জী কহ करे)
User Reviews
No Reviews | Add Yours...