गद्य - काव्य - तरंगिणी | Gadh Kavya Targini

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Gadh Kavya Targini by जगन्नाथ प्रसाद शर्मा - Jagannath Prasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) लक्षणों से शून्य देश-प्रस कोरी बकवाद' या फेशन के लिये गढ़ा हुआ . शब्द है। यदि किसी को अपने देश से प्रेमहे तो उसे अपने देश के मनुष्य, परु, पक्षी, लता, गुल्म पेड़,.. पत्ते, वचन, पवेत,- नदी, निक्केर सबसे प्रेम होगा; सबको- वह: चाहभरी दृष्टि से .देखेगा, सबकी सुध करके वह विदेश सें आंसू बहाए्गाप् {जो यह भी न बह, भी नहीं जानते कि कोयल सौरभ ভিন -पूर्ण मंज कैसे ले हुए है, जो यह भी লনা মান कि किसानों के पड़ के भीतर क्या ही रहा है, त यदि दसः 'बने-ठने मित्रों के बीच अत्येक भारतवासी की ओसत आमदनी का परता बताकर देश-प्रम का दावा करें, तो उनसे पूछना चाहिए कि '#प्लृइयों । बिना परिचय का यह अस कैसा ९ [ विना परिचय का यह्‌ भरम केसा सुख-दुख के तुम कमी साथी न हए उन्हें तुम सुखी देखा चाहते हो, यह सममते नहीं वनता। उनसे कोसों दूर बैठे-बैठे, पड़े-पड़े या खड़-खडे, तुम विलायती वोली मे अथेशाख की दुहाई दिया करो, पर म्रमका नाम उसके साथ न घसीटो ! प्रेम हिसाव- किताव की वात्‌ नदीं हे । . दिसाच-कितावु करतेवाले.माड़.पर मी ५०५ -09 आ . शकल क १३ सकते है पर प्रम करनेवाले नहीं. हिसाव-किताव से देश की ४४ क, व प्रवृत्ति इस ज्ञान से भिन्न हे, वह सन्‌ ङ वेग पर निभैर है, उसका संबंध लोभ या प्रेम-से है जिसके चिना आवरयक त्याग ग का उत्साह हो दी नदी सकता}; जिसे ज की. भूमि से प्रेम दोगा . बह इस पकार कटेगा-- ` “ ` ` नैनन सों. रसखान जवै ब्रज के बन.बाग. तड़ाग निदारों। केतिक ये. कलघौत के घाम.करील. के . कुंजन - ऊपर वां ॥ `




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