हिन्दी शब्दसागर भाग- ८ | Hindi Shabd Sagar Athawa Bhag

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Hindi Shabd Sagar Athawa Bhag by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हाँ मस्तावना हिंदी भाषा का विकास संसार में जितनी भाषाएँ है उन सबका इतिहास बड़ा ही मनोरंजक तथा चिताकषक हे । परंतु जो भाषाएँ जितनी ही प्राचीन होती हैं और विषय प्रवेश जिन्होंने अपने जीवन में जितने उलट फेर देखे होते हैं वे उतनी ही अधिक मनोहर और चित्ताकषक होती हैं। इस विचार से भारतीय भाषाओं का इतिहास बहुत कुछ मनोर॑जक और मनोहर है। भारतवर्ष ने आज तक कितने परिवर्तन देखे हैं यह इतिहास-प्रेमियों से छिपा नहीं है । राजनोतिक सामा- जिक और धार्मिक परिवर्तन का प्रभाव किसी जाति की स्थिति ही पर नहीं पड़ता अपितु उसकी भाषा पर भी बहुत कुछ पड़ता है । भिन्न भिन्न जातियाँ का संसगं होने पर परस्पर भावों ओर उन भावों के ययोतक शब्दों का आदान प्रदान होता है तथा शब्दों के उच्चारण में मी कुछ कुछ विकार हो जाता हे। इसी कारण के वशी- भूत होकर भाषाओं के रूप में परिवतन हो जाता है और साथ ही उनमें नए नए शब्द भी आ जाते हैं। इस अवस्था में यदि वृद्ध भारत की भाषाओं के आरंभ की अवस्था से लेकर चतंमान अवस्था तक में आकाश पाताल का अंतर हो जाय तो कोई आश्यय की बात नहीं है । अब यदि हम इस परिवतंन का तथ्य जान सकें तो हमारे लिये यह कितना मनोर॑जक होगा यह सहज ही ध्यान में आ सकता है । साथ ही भाषा अपना आ- वरण हटाकर अपने चास्तविक रूप का प्रदर्शन उसी को करोती है जो उसके अंग प्रत्यंग से परिचित होने का अधिकारी है । इस प्रकार का अधिकार उसी को प्राप्त होता है जिसने उसके विकास का क्रम भली भाँति देखा है । भाषाओं से निरंतर परिवर्तन होता रहता है. जो उनके इतिहास को और भी जटिल पर साथ ही मनो- हर बना देता है। भाषाओं के विकास की साधारणतः दो अवस्थाएं मानी गई हैं--एक वियोगावस्था और दूखरी संयोगावस्था । चियोगावस्था में सब शब्द अपने अपने वास्तविक या आरंभिक रूप में अलग अलग रहते हैं और प्रायः वाक्यों में उनके आसत्ति _ योग्यता आकांक्षा अथवा स्वराघात से उनका पारस्परिक संबंध प्रकट होता है । क्रमशः परिवतेन होते होते कुछ शब्द तो अपने आरंभिक रूप में रह जाते हैं और कुछ परिवर्तित होकर प्रत्यय विभक्ति आदि का काम देने लगते हैं । फिर ये प्रत्यय आदि घिस घिसाकर मूल शब्द के साथ ऐसे मिढ जाते हैं कि उनका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व ही नहीं रह जासा । अथतत्‌ जो शब्द पहले स्वतंत्र रह- कर वाचक थे वे अब संक्षिप्त तथा विछत रूप धारण करके चोतक मात्र रह जाते हैं। इस प्रकार भाषाएँ वियो- गावस्था से संयोगावस्था में आ जाती हैं। पर जैसे जातियों की स्थिति में परिवतेन होता रहता है वैसे ही भाषाएँ भी एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाती रहती हैं । हमारा विषय भाषाओं का विवरण उपस्थित




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