यमालय से मुक्ति | Yamaalay Se Mukti

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Yamaalay Se Mukti by कपिलदेव सिंह - Kapildev Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) पूरा दिन श्र रात कुशल से बौद जाय त्व परस कुम्भ का फलत मिलेगा | जो जेता सोचता है, वह वैसा होता है । अन्त आच्छा तो सब अच्छा | ब्रात चीत करते रास के दल बज गये। ढिन के छिट फुट जलदे -पटल पचर के सहयोग से एकर हो गये चछर रात्रि की भीषणशता की अभिद्ृद्धि करने लगे । घंध्या से हो रही र ति- शील बायु इस समय तक पर्याप्ल तीत्रता घारण कर ली थी। माया तथा महेश अपने हृदय के दुकड़ढो के साथ झुले मैदान में पड, भगवान से पासी रोकने की प्रार्थना कर रहे थे 1 परन्तु तुपारपूर्ण बायु को असामग्रिक बर्षी ने योग देकर अद्ध रात्रि से कुछ पहिल्ल से पुण्यार्थियों को दो घनन्‍्टे तक कसौटी पर कसा। महेश मन ही मन कुद रहा था परन्तु अपनी इर धर्मिणी सहगामित्री के भो पर बल न आते देख, उसके अन्ताथल के भदगार वह्िगत मे हो पाते थे। बच्चे भो माँ के दुर्गो रुप का स्मरण करते हुये सट्ठ लगाये थें। दो चन्दे वाद्‌ पानी थमा परन्तु अस्थिभेदरिनी वायुं रात मर्‌ चल्लती रही) चं उपद्रव किसी चनं वाल्ली छदा के चोत्तकथे) सूर्योदय नच भभात ल्या! गत राशि की साटी ब्यथा प्राणी मात्र. माता द्वारा लाडित शिशु की माति भूल गया) दिन बनता हो गया। माया सपरिवार दिन भर मेले का पर्यटन करती रहो। इसके अतिरिक्त खबरों ने भरद्वाल आश्रम, अचाय बट महाबीर जी श्राति असिद्ध स्थानों का दर्शन किया जहां पति को इच्छा के अतिकूल माया सेकड़ी रुपये, पंडो, पंडा नो और




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