धर्म - ज्योति | Dharm - Jyoti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ धर्म-ज्योति जय जय जय गुरूदेवज्यू, नमनूं सीस नवाय । धरम रतन एसो दियो, पाप न नडे आय ॥ इसो चखायो धरम रस, विसयन रस न लुभाय । धरम सार ऐसो दियो, छिलका दिया छुड़ाय ॥ धरम दियो ऐसो सबल, पग-पग करे सहाय | भय-भैरव सब छूटग्या, निरभय दियो बणाय || गुरुवर री करुणा जगी, हुयो किसो कल्याण | प्यासा ने इमरत मिल्यो, मिलल्‍यो धरम रो दान ॥ गुरु तो पंथ दिखाणियो, दीनयो पंथ दिखाय । मंजिल आपां पूगस्यां, चाल्यां अपर्ण पांय ॥ घणा दिनां रुलतता फिरूया, आंधी गलियां मय । गुरुवर दीन्यो राजपथ, इब तो मुंडनां नाय ॥ अणजाने भटकत फिरूया, अंधियारै री रात | धरम-जोत गुरुवर दयी, मानो उग्यो प्रभात ॥ रोम-रोम किरतग हुयो, रिण न चुकायो जाय । जीवाँ जीवण धरम रो, यो ही एक उपाय ॥




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