कालिदास और भवभूति | Kalidas Or Bhavbhuti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ कालिदास और भवजूति अति अनायध्यक झक्षव है। वे सोचते है कि काम विगके लिए जगह नहीं है। হলম सहेंद नही कि 111006 1.00 प्रेममें वियराहका प्रयोजन नहीं है। किन्तु जर्यो यौनमिल्न (सहवास) है, वर्धो विगर एक देता कार्य दै, चो सर्यैथा अपरिद्ाय है, जिसके विना काम ही नदीं चल सक्ता । विवाहे तिना यह मिलन एक पशुओंकी झिया मात्र ठदर्ता है और प्रेम पदार्थ भी क्तैब्य ज्ञान हीन काम सेवाका रूप धारण कर छेता है। विय्ाह बतला देता है कि यह प्रिल्न फैउछ आज ही मरा नहीं है, यह क्षणिक सम्मोग नहीं है, ट्सका एक भारी मंविष्य है, यद् चिरज्ञीयनका मिलन है। वियाद समझा देता हे कि नारी केवल भोगका ही पदार्थ नहीं है, वह सम्मानके योग्य है। वियाहसस्कार घरमे सुसवा फुदारा दै, सन्तानके कव्याणका कारण है चौर सामाजिक मगल्या उपाय है) इसके ऊपर केवल व्यक्तिकी दी शान्ति निर्भर नहीं है, शंपूण समाजकी दान्ति मी इसीके ऊपर है । विगाह दी कुलित कामको सुन्दर बनाता है, उद्दाम अवृत्तिके मुँह ल्गाम देकर उसे सयत करता ६, सौर विदवकी वटिको स्वगैगी ओर जींचकर टे जाता है। प्रशआर्म गिय्राह नहीं है, अस्भ्य जातिवेमि भी বিবাহ নর্থী है । विराइ सम्यताया फल दे । यद्द छुसस्कार नहीं है, आवजना ( कूडाकरक्ट ) नही है, विपत्ति नदी है 1 क्या काब्यमें वियाहके लिए स्थान नह्वां है? तो क्‍या कायरम उच्छ घामसेयाको, नम्ममूर्तिके दशनसे उद्दीस ल्ाठ्साकी उत्तेयनावों, और पाश सयोगकी क्षणिर उन्मादनारो दी स्थान ६? यियाइके प्रिससे भी कव्यमें इन ঘন আরীকা ঘগন निन्दनीय दे । समी मद्यकन्योमिं एमे वीम পরে ভল্কা হবে दै} उनका अट वधन नहीं रहता । केरल मारतचद्र (णव गारी कबि ) के समाने काम-क्विगग दी रेने वर्णन कर्के प्रम यन्द थ्राप्त कसते हैं। मिना বিনা इन নানীবা वर्णन केयछ ब्याधिग्रस्त मम्तिप्क्का विकार अथया पागलवा अटाप मान है। महामारतके कताने मी वियाइको वाव्यमें अपरिहार्य समझा है, उद्धनि पाशय- संगम वणन नहीं किया। कालिदास एक मदावि ये | उन्दनि देग्यी, फि कर्तव्य. शानसे रहित राल्सा सुन्दर नरा कुष्ठित दै । यद कुतित चित्र अडित करने नहीं,




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