आचार्य हेमचन्द्र और उनका शब्दानुशासन : एक अध्ययन | Acharya Hemchandra Aur Unka Shabdanushasan : Ek Adhyyan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
387
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ # वे
समन्वय करते समय अनुद्ृत्ति या अधिकार सूत्रों की आवश्यकता अतीत न
हो | छक्तणों के साथ छूचयों से भी ऐसा 'सामथ्यं रहे जिससे वे , गंगा के
मिरवच्छिन्न श्रवाह के , समान उपस्थित होकर 'विपय को क्रमबदध रूप में स्पष्ट
करा सकें । विपय व्यतिक्रम होने से पाठकों को समझने में यहुत कठिनाई
होती है । अतः एक ही विषय के सूत्रों को एक ही साथ रहना आवश्यक है ।
ऐसा न हो कि सन्धि के प्रकरण में समास ' विधायक सूत्र, समास में कारंक
चिषपयक सूत्र भौर छदन्त में तद्धित विधायक सूत्र ना जार्यै! इस प्रकार कै
विषय व्यतिक्रम से जअध्येताओं को कष्ट का भज्ञुभव होता है तथा विपय की
घारा के बिच्छिन्न हो जाने से तथ्य अहण के किपु अधिक आयास करना
पड़ता है ।
शरीरात उपयुक्त तीनों दोष न््यूनाधिक रूप में हेस के पूर्ववर्ती सभी
चैयाकरणों में पाये जाते हैं। सभी की होली में जस्पष्टता, क्रमभंग एवं
छुरूद्वता पायी जाती है । कोई भी निष्पक्त व्यक्ति इस सत्य से इंकार नहीं
कर सफता दै कि हेसम दाब्दानुशासन संस्कृत भाषा के सर्वाधिक शब्दों का
सुस्पष्ट भज्लुशासन जाशुबोघक रूप में उपस्थित करता है। इस एक ही
व्याकरण के अध्ययन से व्याकरण विपयक अच्छी जानकारी प्राप्त की जा
स्तम है; दिध हैमखज्दडुदरसन्ः की मदस्ते मदस्य दोक निग्न पथ
उपलब्ध होता है, जो यथार्थ दै---
तेनातिविस्ठृतदुरागमविप्रकीर्ण-
शब्दानुशासनसमूहकदर्थितेन |
अभ्यर्थितो निरुपम विधिवद् उयधत्त,
शब्दालुशासनमिदं मुनिदेमचन्द्र: 11 ३४ ॥।
आअर्थात---अतिविस्तृतत, कठिन एवं कमभेग आादि दोपों से युक्त ब्याकरण
अन्यों के अध्ययन से कष्ट श्राप्त करते हुए जिज्ञासुओं के छिए इस दशब्दाहुशासन
की रचना फी হাজী ই ।
यह सुजरात का ब्याफरण कहछाता दे। माख्यराज भोज ने व्माकरण
अन्य दिखा था জীব অহ उन्हीं का क््याकरण काम में छाया जाता या।
वियाभूमि गुजरात में कलछाप के साथ भोज व्याकरण की सी पझतिष्टा थीं।
লু জাবাত ইল ने सिद्धराज के सदेश से गुर्जर देशवासियों के क्ष्ययन
के पेठ उक्त दाइदाजुश्यलासन की रचना की दे । क्मरचन्दर सूरि ने अपनी
चुद्दत् शपचूर्णि में इस दाव्दानुशास्तन की दोषमय विमुक्ति की चर्चा करते
हर् टिम्ग द--
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