मधुकरी भाग १ | Madhukari Part1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी कहानियाँ का विकास १५ बंगला और अंग्रेज़ी से भी अनुवाद आरम्म हो गया था | उसी समय वाबू काशीनाथ खत्री ने छेम्ब्त टेट्स का अनुवाद किया था । १९०० ई० में सरस्वती का प्रकाशन आरम्भ हुआ । कहानियों की आर दाष्टे दाड़ाते हुए कहना होया कि सरस्वती द्वारा ही आज हम कहानी-साहित्य का पूर्ण विकास हिन्दी में देख रहे हैं । पं० किशोरीलाल गोस्वामी की इन्दुमती कहानी १९०२ ई० में सरस्वती म प्रकाशित हु थी । लाला पावतीनन्दन के नाम से बाबू शिरिजाकुमार घोष ने अंग्रेजी की कइ कहानियाँ का छायानुवाद किया था । भूतों की हवेली खूब पसन्द की गइ । कहानियों के प्रति पाठकों . की रुचि बढ़ने छगीं | सरस्वती में प्रकाशित कहानियों को लोग बड़े चाव से पढ़ने लगे किन्तु कर ७ मोलिक लेखकों का अभाव था | श्रद्धेय पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी ने संस्कृत की आख्यायिकाओं को हिन्दी-रूप दिया था । बंग-महिला ने बंगला की उच्च कोटि की कहा- नियों से हिस्दी जनता को परिचित कराया था । उसकी कहानियों में दुलाई-वाली उस समय की दृष्टि से बहुत अच्छी है । हिन्दी-कहानियों का वह आरम्मिक काल था | ९ #७ वत्तमान युण की मौलिक कहानियों का विकास इन्दु के द्वारा अधिक हुआ । १९११ इ० में बाबू जयदाड्डर प्रसाद ने इन्दु में एक सॉलिक कहानी लिखी । उसका नाम था--श्राम । प्रसाद जी युण- प्रवत्तक कवि थे । अतएव उनकी कहानियों में मावुकता का आओत-प्रोत होना स्वाभाविक ही है । उनकी कहानियाँ स्थायी साहित्य की चीज हैं । उन्हें दो सो वर्षो के बाद पढ़ने पर उतना ही मजा आयेया जितना आज आता है । आकाशः-दीप बिसाती प्रतिथ्वनि दिवदासी चूड़ीवाछी स्वर के खैंडहर में गूदड्साई चूरी सलीम चित्र-मन्दिर चित्र- वाले पत्थर और सालवती आदि कहानियाँ हिन्दी-साहित्य में अमर रहेंगी । जिस तरह प्रसाद जी की कविताओं से हिन्दी में नवयुण आरम्भ




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