जैन धर्म और दर्शन | Jain Dharm Aur Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
585
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जैन धर्म और दर्शन [9'
नहीं जानता था। न कोई वाहन था और न कोई यात्री । गांव बसे नहीं थे |
ने कोई खामी था और न कोई सेवक । शासक और शाततित भी नहीं ये | न.
कोई शोपक था और न कोई शोपित । पति-पत्नी या जत्य-जनक के सिवा
सम्बन्ध जैसी कोई वस्तु ही नहीं थी। ,
धर्म और उसके प्रचारक भी नहीं थे, उस समय के लोग सहज धमं फे
अधिकारी और शान्व-खभाव वाले थे | चुगली, निन्दा, आरोप जैसे मनोभाव
जन्मे ही नहीं थे | हीनता ओर उत्कर्प की भावनाएं भी उत्तन्न नहीं हुईं थीं।
लड़ने कगड़ने की मानसिक प्रन्थियाँ भी नहीं बनी थीं | वे शत्र और शास्त्र
दोनों से अनजान ये |
अन्नह्मचर्य सीमित था, मारकाट और हत्या नहीं होती थी | न संग्रह था,
न चोरी और न असत्य।| वे सदा सहज आनन्द और शान्ति में लीन
रहते ये।
काल-चक्र का पहला भाग ( अर ) बीता | दूसरा और तीसरा भी लगभग
बीत गया |
सहज सम्रृद्धि का क्रमिक हास होने लगा। भूमि का रस चीनी से अनन्त-
गुणा मीढा था, बह कम हौने लगा | उसके वर्ण, गन्ध और स्पर्श की रेता
भी कम हुई।
सगल मनुष्यों के शरीर क परिमाण भी घटता गया | तीन, दो श्रीर.एक
दिन के बाद भोजन करने की परम्परा भी हटने लगी। कल्प-बृक्षो की शक्ति
भी ज्ञीण हो चली [
यह यौगलिक व्यवस्था के अन्तिम दिनो की कहानी है।
कुलकर-व्यवस्था
असंख्य वर्षों फे बाद नए युग का आरस्म हुआ 1 यौगलिक व्यवस्था धीरे-
धीरे हटने लगी। दूमरी कोई व्यवस्था अमी जन्म नहीं पाई [ संक्रान्ति-काल
चल रहा था। एक ओर आवश्यकता-पूर्ति के साधन कम हुए तो दूसरी ओर
जन-संख्या और जीवन की आवश्यकवाएं कुछ बढ़ी | इस-स्थिति में ५
संध श्ठीर सूट-खसोट होने लगी । परिस्थिति की .वियशवा. नै कमा, «47
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