हर्बर्ट स्पेनसर की ज्ञेय मीमांसा | Herbert Spencer ki gyey mimansa
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
70
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११ )
नहों कि काल आर आकाश बुद्धि के वास्तविक
रूप टै । इससे ता यही समभा जाता हे कि
जैसे दूसरे व्यापक विचारों के साररूप दूसरी
विचार-सामग्री से उत्पन्न होते हैं वेसे हीये भो
उत्पन्न हेति हैं। अन्तर केवल इतना ही हे कि
इनके विषय में अनुभव-क्रिया उसी कार से बढ़ती
चली आई है, अर्थात् इनका अनुभव तभी से किया
जा सकता हे जब से बुद्धि का विकाश हुआ है।
इस सिद्धान्त का समथन व्यवच्छेद-नय से भी होता
है। हमे आकाड का जे ज्ञान होता है वह केवल सह-
वर्ती स्थानों ही का ज्ञान है। यदि हम आकाश की
कठ्पना करना चाहे ता इस तरह कर सकते हैं ।
ग्राकाश के किसी स्थान--किसी भाग--का हम
पेसी सीमाओं से घेर जे आपस में विशेष सम्बन्ध
रखती हां। आर जे सहदयर्तों हां । ये सीमाये' चाहे
रेखाये हों चाहे धरातर हों, जब तक सहवतों
न होंगी तब तक इनकी कटपना न हा सकेगो।
ये ग्राकाश-रूप बनाने वाटी सीमायेः सहवर्तो
जड़ वस्तुये' हैँ । इनमे वस्तुत्व कुर भो नरी; वस्तु.
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