हर्बर्ट स्पेनसर की ज्ञेय मीमांसा | Herbert Spencer ki gyey mimansa

Herbert Spencer ki gyey mimansa by लाला कत्रोमल - Lala Katromal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) नहों कि काल आर आकाश बुद्धि के वास्तविक रूप टै । इससे ता यही समभा जाता हे कि जैसे दूसरे व्यापक विचारों के साररूप दूसरी विचार-सामग्री से उत्पन्न होते हैं वेसे हीये भो उत्पन्न हेति हैं। अन्तर केवल इतना ही हे कि इनके विषय में अनुभव-क्रिया उसी कार से बढ़ती चली आई है, अर्थात्‌ इनका अनुभव तभी से किया जा सकता हे जब से बुद्धि का विकाश हुआ है। इस सिद्धान्त का समथन व्यवच्छेद-नय से भी होता है। हमे आकाड का जे ज्ञान होता है वह केवल सह- वर्ती स्थानों ही का ज्ञान है। यदि हम आकाश की कठ्पना करना चाहे ता इस तरह कर सकते हैं । ग्राकाश के किसी स्थान--किसी भाग--का हम पेसी सीमाओं से घेर जे आपस में विशेष सम्बन्ध रखती हां। आर जे सहदयर्तों हां । ये सीमाये' चाहे रेखाये हों चाहे धरातर हों, जब तक सहवतों न होंगी तब तक इनकी कटपना न हा सकेगो। ये ग्राकाश-रूप बनाने वाटी सीमायेः सहवर्तो जड़ वस्तुये' हैँ । इनमे वस्तुत्व कुर भो नरी; वस्तु.




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