हिंदुस्तानी त्रैमासिक | Hindustani Tremasik
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
119
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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৯ লিমা সী লিপ সি ৪ ০5 এপস
१६ हिंदुस्तान
चक्र के सबंध मे ভাত अग्रवाल ने निप्पणी मे कहा है. चक्र समान ভীলা লালে পলাশী লিই
पवित्री भी कहा जाता है (ब्रिंः के आधार पर शिरफ)। किन्तु यहे चकत ही ई गो विष्णु
के अस्तो ये प्राचीन कासे रहा है, और अब भी अकाली सिद्खों के द्वारा गिर पर पगड़ी के साथ
बश्च क्र धारण किया जाता है। थोगी के बेय मे प्रस्तुत हुए मनोहर का बणव करने हा
मंझन ने भी इसे मस्तक पर भारण कराया है|
चक्र माथ मुख भम्तम चढ़ावा। [मधुर {८.८}
(५३) १२७.८-९ : हों रे पँखेरू' पंखी जेह़िं बन मोर विवाह!
खेलि चला तेहि बन कह तुम्ह आगन घर লাস্ট 1!
पृलेक--सं० पिरप . কেম (पेद
पंखेरू' के संबंध में डॉ० अग्रवाल ने टिप्पणी दो है:
गदर को यह ठामिह्ास
रूअ>परलेरू। किन्तु पक्षी को पक्षि रूप कहना युवितयुक्त नहीं हे
भी संदिगघ क्गता है। पंखेरू<पक्षधर“पंखों को घारण करनेवाला, पक्षी हे ।
(५४) १५८.१: चहुं दिसि अने सोटिअन्ह फेरी;
में कठकाई राजा দঈীশী।
कटकाई' का अर्थ डॉ० अग्रवाल ने कटक दल की यात्रा' किया है, कि मेरी समझ भें कटकाई
<कटकिका>वछोटी सेना है। यथा:
तौ क्त छीन््ह संग कटकाई।--रामारत मानम
(५५) १२८.२ : जाँवत अहै सकर ओरगाना'।
साँबर लेहु दूरि है जाना)
ओरगाना' का अर्थ डॉ० अग्रवाल ते प्रधान सामन्त आदि किया है। किन्त यष्टु अपना
भू्य-षमूदाय दै! (देखिए उपर ९९.८९ के ओरागाने! के संबंध का শিক )
(५६) ৫.৩: আগা ञे दष्ट मग खम् प्
गुदरि जाई सब होडहि आग।
मत्रा का अर्थ डॉ० अग्रवाल ते दीक्षा-मंत्र' किया है। किन्तु मेरे विचार से यह मंता, माता
सामान, शंबल, है।
(५७) १२९.७ : केसे ভান कुरकुटा रुखा।
ऊरकुटा का अथ डॉ० अग्रवाल ने भात' किया है, और टिप्पणी में कहा है : ০০০৪
कृत्त, कूट : भात के छिए कूरः शव्द मृच्छकटिक भँ पअयुक्त हुआ है। किसे 'कृरकुदा
है: <क्र(--यबाला हुआ चावल ) +-कुटित (>-टेढ़ा हो गया हुआ, ऐंठा हुआ) । अतः 'कुरकुटा
का अर्थ होगा: सूख कर ऐंठा हुआ उबाला चावल्ल।
(५८) १३०,७ : ओनहूँ सिस्टि जौ देख 'परेवा।
तजा राज कजरी बन सेवा
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