सामायिक सूत्र | Samayik Sutra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Samayik Sutra  by अमर मुनि - Amar Muni

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अमर मुनि - Amar Muni

Add Infomation AboutAmar Muni

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
छ गराणिमात्र में समसाव फी प्रदृत्तिमानव-समाज में सुख-शाति का विस्तार, ग्रशाति का नाश और कलह-प्रपंच का त्याग है। यही सामाय्रिक का लचय और यद्दी सामायिक का उदेश्य द सामायिक समभाव की अपेक्षा रखता ६ । बद्र सुख पटिका, रजो- हरण ष्रौर यैखका-कटासन श्रादि फी वया मन्दिर आदि की श्रेष्ठा नहीं रखता | उक्त सब चीजों को समभाव के श्रभ्यास का साधन कटा जा. सकता दे, परन्तु यदि ये चीजें समभाय के अस्यास में हमें उपयोगी नहीं হী লক্ষী বী परिग्रद् मात्र है, आ्राउम्बरमात ए। सासायिक करते हुए में लोम, क्रोध, मोह, भ्रज्ञान, दुराग्रह, अ्रन्धश्नद्धा तथा साप्रदाया- न्‍्तर दवं प को स्थाग करने का अम्यास करना चाहिए । ছসল্য सम्प्रदायों के साथ समभाव से बर्ताव करना, तथा उनके विचारों को सरल भाव से समम्कना, सामायिक के साधक का अतीय श्रावश्यक কর্ন है। उक्त सब वातों पर कविधी जी ने श्रपने विवेचन में विस्तार फे साय वहुत रच्छ ठग से प्रकार दाला दै । कभी-कभी दम-धार्मिक क्रिया-कलापों और विधि-विधानों को प्रपच- सिद्धि का निमित्त भी बना लेते हैं, धर्म के नाम पर खुल्लम-खुल्ला अधर्म का प्राचरण करने लगते ह । पेखा इसलिष्‌ ोता है फि हम उन विधानां का हृदय एव माव टोक तरह समम नहीं पाते | आज के घ॑ श्रौर सम्प्रदार्यो के श्रधिकतर थयुयायिर्यो का प्रस्य श्राचरण तथा धर्म- विधान सकी साची दे रा है । दूसरी ट कौ मनोडत्ति &ै--धार्मिक पट फी मनोत्ति को ही হুল लेंगे । हमारे एरव॑र्जों ने, खुधारकों ने समय-समय पर थुगाजुझूल उचित परिष्कार और क्राति की भावना से प्रेरित होकर प्राचीन जीण॑शीण घार्मिक क्रिया-कलापों में थोढ़ा सा नया द्वेर-फेर क्या किया--हसने उसे फूट का प्रमाण ही सान लिया--मेदुभाव का आाद्श/सिद्धात ही समझ लिया । जैन समाज का श्वेताबर और दिगवर संप्रदाय, तथा श्वेताबर संप्रदाय में भी, मूिपूजक, स्थानक चासी ध्रादि के भेद और दिगवर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now