अथ श्राद्धपितृमीमांसा | Ath Shraddh Pitra Mimansa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९११ ) अंधकार को सत्शास्त्र रूपी अखदड सूर्य्य के तेज से निवारण करने के लिये दिग्दर्शन माच इस अथम्म अध्याय में ओर विस्तार पूर्वक द्वितीय श्र ध्याय में यथायोग्य समाधान किया जायगा क्रि श्राद्ध ब्द का शास्त्र में केखा श्रय दिखाया गया है और उस का रहस्य क्‍या है ॥ यथा सहर्षि सरीचि मुनिजन स्पष्ट करते हैं प्रेत पिलंश् निर्दिश्य भोज्यं यत्‌ प्रियमात्मनः । शह्यया दीयते यन्र तच्छाडु परिकीर्तितम्‌ ॥ शर्थ-सात्विक भोजन জী झपने को प्ियहोय षह मेतयोनि सें गये उख भृतक के निमित्त यया नाम उञ्चारण करके নুর জা कुष दिया जाय उसको हो अआाद्ध कहते हैं वा उसी कृत्य का ही नाम शद्ध है। तथा महपिं पुलस्न्य मुनिजनमौ स्पष्ट कहते फि संस्क्ृतंव्यंजनाद'च पयोद्धिचुतानिवत्म्‌ । अआहुयादीयतेयस्माचे न श्राद्रुनिगद्यते ॥ देशोकारेचपात्रेच च्या विधिनाचयत्‌ 1 पितृनुद्चिश्यविभेभ्यो दत्त श्राह्ममुदाहतम्‌ ॥ भावार्थ-दूघ दही झौर ची से पकाया हुआ न्न आदि, अद्धा खैर शास्त्र विधि पूर्वक देश काल शव सुपाच ब्राह्मणों का ठीक २ विचार करके पितरों के निमित्त श्राद्ध के योग्य आह्यणों को जो कुछ दिया काय उको ही जाद्ध कहा गया-है॥ तथा श्री योगी यश्चवल्यय मुनिजी ने ्ावाराध्याय আঁ লী




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