राष्ट्र - धर्म | Rashtra - Dharm
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सत्यदेव विद्यालंकार - Satyadev Vidyalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८
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-- गरीयको यदा सन्तोप मानना चाहिये कि वह पाप-पुरयके इष
भ॑भरसे द्रसीलिये আলি दै कि वह धर्मं जीवी लोगोकी नियत दक्तिणा
घुकानेकी शक्तिसे वेचित दै 1“*-“ धर्मने मयुप्यकी दिको संकुचित, इृत्तिको
अनुदार, स्वभावको असहिप्णु, दिमागको सनकी और श्चाचार-विच्ारको
पतित धनाकर भनुष्य-समाजके जीवनमें एठ, दुराग्रह, विरोध, ईप्या ओर
पकी भावनाको मुप्यके देदमें रुधिरकी तरह पेदा कर दिया है ।”
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और अपनेको बहुत अधिक मद्दत्व देते थे। योग्यता, ईमानदारी, नेक-
नीयती और सच्चरित्रता आदि सदूगुण पधिकांशर्मं नास्तिक लोगोंमें ही
पाये जाते थे ।” ७)
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