अशोक नाटक | Ashok Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दृश्य ] पहला अक ['&
छोड़ दूंगा और तक्षशिला के विद्रोह का दमन कर मैं
शीघ्र ही पाटलिपुत्र लौट आऊँगा |
असंधिमित्रा : नही, महेन्द्र और सघमित्रा को पाटलिपुत्र छोड़-
कर हम दोनों तक्षशिला चलेंगे ।
अशोक : यह भी हो सकता है ।
श्रसंधिमिना : (प्रसन्नता से) यह कार्यक्रम सर्वेथा ठीक है ।
अ्रशोक : (विचारते हुए) देखो, प्रियतमे, यह सुसीम एक प्रदेश
का विद्रोह भी ज्ञान्त न कर सका। यदि भारतीय
साम्राज्य इसके हाथ मे गया तो उसकी क्या दशा होगी
इसका अनुमान किया जा सकता है ।
अंसंधिमित्रा : बिलकुल !
श्रहमोक : मेने श्रभी तुम्हे सस्कृत की एक उक्ति बतायी थी “वीर
भोग्या वसुन्धरा' । मुझ मे कोई महत्त्वाकाक्षा नही है
यह मैं नहीं कहता; महत्त्वाकाक्षा मानव की स्वाभाविक
वृत्ति है ।
असंधिमित्रा : इसमे भी कोई सन््देह है ।
अशोक : परन्तु इस महत्त्वाकाक्षा के श्रतिरिक्त भी जब में देश
की ओर हृष्टिपात करता हैँ तव भी मुझे सुसीम का सम्रादू
होना किसी भी प्रकार देश के लिए कल्याणकारी नही
दीखता ।
असधिमित्रा : कदापि नही ।
श्र्लोक : पितृभ्य चन्द्रगुप्त की देन का पित्ताजी यदि विस्तार नही
करपायेत्तोकम से कम उन्होने उसका सरक्षण तो किया।
सुसीम से यह् नही होने वाला है ।
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