साधना का राजमार्ग | Sadhana Ka Rajmarg

Sadhana Ka Rajmarg by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूर्ण आस्था रखते हुए श्रच्छी तरह उन्ही के अनुरूप आचरण करना (09 00120006) লঙ্রন্ चारित्र है । ज्ञान नैत्र है, चारित्र चरण है पथ का अवलोकन तो किया पर चरण उस और नही बड़े तो अ्रभीष्सित लय की प्राप्ति असभव है। स्विनॉकने लिखा है “विना चारित्र के ज्ञान गीशे की 'आँख की तरह है सिरे दिखलाने के लिए और एक दम उपयोगिता रहित ”। ज्ञान का फल विरक्ति है । ज्ञान होने पर भी यदि विषयों में अनुरक्ति बनी रही तो वह वास्तविक ज्ञान नहीं है । सम्यक चारित्र-जैन साधना का प्राण है। विभावगत आत्मा को पुन शुद्ध स्वरूप में अधिष्ठलित करने के लिए सत्य के परिज्ञान के साथ जागरुक भाव से सक्रिय रहना आचार-आराधना है। चारित्र एक ऐसा चमकता हीरा है जो हर किसी पत्थर को घिस सकता है। जीवन का लक्ष्य सुख नही चारित्र है? “उत्तम व्यक्ति गब्दों से सुस्त और चारित्र से चुस्त होता है? । बौद्ध साहित्य मे सम्यक चारित्र को ही सम्यक व्यायाम कहा है । समन्वय : सम्यरदर्शन, सम्यग्ज्ञान, और सम्यक चारित्र ये साधना के तीन अग है श्रन्य दर्शन केवल एक अ्रग को ही प्रमुखता देते है किन्तु जैन दर्शन तीनो के समन्वय को। भगवान श्री महावीर नै चार प्रकारके पुरुष वतलाप्रे है -- एक शीलसम्पन्न है, श्रुतसम्पन्न नही । दूसरा श्रुतसम्पन्न है गीलसम्पन्न नही । 1 ज्ञानस्य फल विरत्ति - > वीचर, > कन्फ्युियस




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