वैदिक साहित्य की सूक्तियां | Vaidik Sahitya Ki Suktiyan

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Vaidik Sahitya Ki Suktiyan by उपाध्याय अमर मुनि - Upadhyay Amar Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऋगवेद की सूक्तियाँ নী २६. २७. সনে, २०. द १ রঙ २२. ३३, হু ट ॥ हम देवतामो की मित्रता (दोस्तो) प्राप्त करे । कभी भी दीन-हीन न होने वाली अदित्ति पृथिवी ही प्रकाशमान स्वगं है, श्रन्तरिक्ष है, जगत की जननी माता है, पिता है और दुःख से च्राण दिलाने वाला पुत्र भी यही है। कि वहुना, सभी देव, सभी जातिया, तथा जो उत्पन्न हुआ है और होगा, वह सभी अदिति अर्थात पृथिवीस्वरूप है । मोह से मूच्छित न होने वाले ज्ञानी पुरुष श्रपते आत्मीय तेज से सदेव स्वीक्ृषत ब्रतो मे दृढ रहते हैँ, बर्थात्‌ प्राणपण से अपने नियमो की रक्षा करते हैं । कर्मशील व्यक्ति के लिए समग्र/हवाएं और नदियाँ मधु वर्षण करती है। औपधियाँ (अन्न आदि) भी मधुमय हो जाती हैं । हमारी रात्रि और उपा मधुर हो। भूलोक अथवा पाथिवमनुष्य मावृयेविशिष्ट हो, भौर वृष्टि आदि के द्वारा सव का पिता (रक्षक) कहा जाने वाला आकाश भी मधुयुक्त हो । हमारे लिए समस्त वनस्पतियाँ मधुर हो | सूर्य मधुर हो, गौर सभी गोएं भी मघुर हो 1-+- हैं अग्ति (अग्रणी नेता), तुम्हारा मुख (हप्टि) सब भोर है, अत तुम सब जोर से हमारी रक्षा करने वाले हो, तुम्हारे नेतृत्व मे हमारे सब पाप विकार नष्ट हो । भूख और प्यास से पीड़ित लोगो को यथेष्ट भोजन-पाच (अन्न तथा दुग्ध, जल आदि) अर्पण करो । ऐश्वयं प्राप्ति का हैंड सकलप रखने वाले निश्चय ही भपेक्षित एेदवयं पाते है । ८. यजुर्वेद १३।२६ । &€. वयोडन्‍न, आसुति-पेय क्षीरादिकम्‌ 1 १०, इद्वे उपेक्षितम्‌ । गौ पशु मात्र का उपलक्षण है, अत. तभी पशु मधुर हो, सुखप्रद हो ।




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